3 साल के इंतज़ार के बाद आख़िरकार मिर्ज़ापुर सीज़न 3 रिलीज़ हो गया है। पिछले सीज़न को 3 साल हो गए हैं, धीरे-धीरे कुछ लोग सीज़न 2 की कहानी भूल रहे थे… इसलिए लगता है कि मेकर्स ने जल्दबाज़ी में टीज़र लॉन्च कर दिया था। टीजर लॉन्च होने के बाद दर्शकों के बीच उत्साह का माहौल था, लेकिन ऐसा लगता है कि यह सीरीज के रिलीज होने तक ही सीमित था। क्योकी ऐसा लग रहा है जैसे ये भौकाल का ये सिलसिला काफी खिंचा गया है। जिन दर्शकों ने एक रात में पूरा सीजन 2 देखा, उन्हें आश्चर्य हुआ होगा कि मैं सीजन 3 के लिए क्यों जाग रहा हु… मैं इसे कल भी देख सकता था। सीजन 1 और सीजन 2 में कालीन भैया और मुन्ना भैया के किरदारों को मेकर्स ने इतना बड़ा बना दिया था और इन किरदारों को सीजन 3 में ज्यादा स्क्रीन टाइम ना मिलना प्रमुख कारण हो सकते की सीरीज थोड़ी बोरिंग लग सकती है।
पहले दोनो सीजन में से बहुत ऐसे सीन्स है जो दर्शक आज भी रिपिट करके देखते है, इस सीजन में वैसा ढूंढना थोड़ा मुश्किल है। इस सीजन में भी अच्छा बैकग्राउंड म्यूजिक, अच्छी एडिटिंग, बहुत सारा वायलंस जो मिर्ज़ापुर नाम के लिए शोभनीय है जिनको नजरअंदाज नहीं किया जा सकता लेकिन एकमात्र चीज़ जो चुभती रहती है वह यह कि दर्शकों को वह देखने को नहीं मिला जो वे वास्तव में चाहते थे।
बेशक, इस बात का दबाव नहीं होना चाहिए कि लेखक दर्शकों की रुचि के मुताबिक कहानी लिखें पर यह भी सच है की अप्रत्याशित रूप से घटित होने वाली चीजों को देखकर दर्शक ज्यादा खुश होता है, लेकिन यहां ऐसा नहीं हुआ। गोलू, गुड्डु, शरद, छोटे त्यागी, पंडितजी, बीना ने अपनी भूमिका काफी ईमानदारी से निभाई है। उनकी एक्टिंग पर कोई शक नहीं किया जा सकता।
मुद्दे की बात करें तो हम एक उदाहरण दे सकते हैं कि जैसे रबर बैंड को दोनों हाथों से खींचने पर रबर बैंड टूट जाता है तो झटका दोनों हाथों को लगता है, वैसे ही यहां मेकर्सने इस कहानी को कहीं से कही भी खींच तो ली, लेकिन झटका दर्शकों को लगा।
निष्कर्ष : जहां सीजन 1 खत्म हुआ, वहीं दर्शकों में उत्सुकता थी कि सीजन 2 में क्या होगा?
जहां सीजन 2 खत्म हुआ, वहीं दर्शकों में उत्सुकता थी कि सीजन 3 में क्या होगा?
लेकिन सीज़न 3 के अंत तक, शायद ही दर्शकों में सीजन 4 की उत्सुकता बची होगी।