कुछ विचारप्रेमचंद के चुने हुए निबन्धों का संग्रह है। इसका प्रकाशन सरस्वती-प्रेस, बनारस द्वारा १९३९ ई॰ में किया गया था।
"हम साहित्यकारों में कर्मशक्ति का अभाव है। यह एक कड़वी सचाई है; पर हम उसकी ओर से आँखें नहीं बन्द कर सकते। अभी तक हमने साहित्य का जो आदर्श अपने सामने रखा था, उसके लिए कर्म की आवश्यकता न थी। कर्माभाव ही उसका गुण था; क्योंकि अक्सर कर्म अपने साथ पक्षपात और संकीर्णता को भी लाता है। अगर कोई आदमी धार्मिक होकर अपनी धार्मिकता पर गर्व करे, तो इससे कहीं अच्छा है कि वह धार्मिक न होकर 'खाओ-पिओ मौज करो' का क़ायल हो। ऐसा स्वच्छन्दाचारी तो ईश्वर की दया का अधिकारी हो भी सकता है; पर धार्मिकता का अभिमान रखने वाले के लिए इसकी सम्भावना नहीं।
जो हो, जब तक साहित्य का काम केवल मन-बहलाव का सामान जुटाना, केवल लोरियाँ गा-गाकर सुलाना, केवल आँसू बहाकर जी हलका करना था, तब तक इसके लिए कर्म की आवश्यकता न थी। वह एक दीवाना था जिसका ग़म दूसरे खाते थे; मगर हम साहित्य को केवल मनोरंजन और विलासिता की वस्तु नहीं समझते। हमारी कसौटी पर वही साहित्य खरा उतरेगा, जिसमें उच्च चिन्तन हो, स्वाधीनता का भाव हो, सौन्दर्य का सार हो, सृजन की आत्मा हो, जीवन की सचाइयों का प्रकाश हो,––जो हममें गति और संघर्ष और बेचैनी पैदा करे, सुलाये नहीं; क्योंकि अब और ज़्यादा सोना मृत्यु का लक्षण है।"...(पूरा पढ़ें)
एक घूँटजयशंकर प्रसाद द्वारा रचित एकांकी है। इसका प्रकाशन १९४८ ई॰ में बनारस के सरस्वती-प्रेस द्वारा किया गया।
"(अरुणाचल—आश्रम का एक सघन कुञ्ज। श्रीफल, वट, आम, कदम्ब और मौलश्री के बड़े-बड़े वृक्षों की झुरमुट में प्रभात की धूप घुसने की चेष्टा कर रही है। उधर समीर के झोंके, पत्तियों और डालों को हिला-हिलाकर, जैसे किरणों के निर्विरोध प्रवेश में बाधा डाल रहे हैं। वसन्त के फूलों की भीनी-भीनी सुगन्ध, उस हरी-भरी छाया में कलोल कर रही है। वृक्षों के अन्तराल से गुञ्जारपूर्ण नभखण्ड की नीलिमा में जैसे पक्षियों का कलरव साकार दिखाई देता है!
मौलश्री के नीचे वेदी पर वनलता बैठी हुई, अपनी साड़ी के अंचल की बेल देख रही है। आश्रम में ही कहीं होते हुए संगीत को कभी सुन लेती है, कभी अनसुनी कर जाती है।)
(नेपथ्य में गान)
खोल तू अब भी आँखें खोल!
जीवन-उदधि हिलोरें लेता उठतीं लहरें लोल।
छबि की किरनों से खिल जा तू,
अमृत-झड़ी सुख से झिल जा तू।..."
अहिल्याबाई होलकरगोविन्दराम केशवराम जोशी द्वारा रचित मराठा मालवा साम्राज्य की होलकर साम्राज्ञी अहिल्याबाई होलकर की जीवनी है जिसका प्रकाशन १९१६ ई. में हुआ था।
"महाराष्ट्र देश भारत के दक्षिण भाग में है। इसके उत्तर की ओर नर्मदा नदी, दक्षिण में पुर्तगीजो का देश, पूर्व में तुंगभद्रा नदी और पश्चिम में अरब की खाड़ी है। इस देश के रहने वाले महाराष्ट्र अथवा मरहठे कहलाते हैं। जिस समय औरंगजेब बादशाह सारे भारतवर्ष में हिंदू राज्यों का नाश करने में लगा हुआ था, उस समय इसी महाराष्ट्र कुल के एकमात्र वीरशिरोमणि जगतप्रख्यात महाराज शिवाजी ने सारे भारत में एक नवीन हिंदू राज्य स्थापित किया था। इनके साथ ही महाराष्ट्र देश में और भी अनेक वीर हुए थे और वे वीर भी शिवाजी की नाई अति सामान्य वश में जन्म लेकर अपने अपने उद्योग और वाहुबल से एक एक राज्य और राजवंश की प्रतिष्ठा कर गए हैं। इन अनेक वंशों में से आज दिन तक भारतवर्ष में कई राज्य वर्तमान हैं। इनही वीर पुरुषों में एक साहसी बहादुर और योद्धा मल्हारराव होलकर भी हुए हैं और “श्रीमती महारानी देवी हिल्याई” इन्हीं मल्हारराव होलकर की पुत्रवधू थी।..."(पूरा पढ़ें)
"जोशुआ रेनाल्ड्स सैमुएल रेनाल्ड्स का लड़का था। १६ जुलाई सन् १७२३ ई॰ को पैदा हुआ और अपने जीवन-काल में ब्रिटिश चित्रकला को धरती से उठाकर आकाश तक पहुँचा गया। होगार्थ उस समय देश में प्रसिद्ध हो रहा था, पर उसकी तस्वीरों की क़द्र करने वाले बहुत थोड़े थे। उसने पुराने आचार्यों से शिक्षा नहीं प्राप्त की थी, इसके विपरीत रेनाल्ड्स ने पुरानी पद्धति का अभ्यास किया था और माइकेल एंजेलो, राफाएल और क्रेजियो का अनुयायी था। अतः जनसाधारण ने उसके चित्रों का आदर दिया।..."(पूरा पढ़ें)
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