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ट्यूडर राजघराना

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ट्यूडर राजवंश (Tudor dynasty) ने 1485 से 1603 ई0 तक इंग्लैंड में शासन किया। उसे हम इंग्लैंड के इतिहास के मध्य और आधुनिक युग की कड़ी मान सकते हैं। मध्यकालीन दुर्व्यवस्थाओं एवं अशांत स्थितियों को दूर करने, इंग्लैंड के आधुनिक राजनीतिक युग के प्रवर्तन और राष्ट्र की महत्ता के दिनों प्रारंभ करने का श्रेय उसे प्राप्त है।

हेनरी सप्तम

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ट्यूडर वंश का प्रथम शासक हेनरी सप्तम (1485-1509) ई0 था। वह विख्यात वेल्स सरदार सर एविन ट्यूडर का पौत्र और रिशामांड का अर्ल था। उसने वासवर्थ की लड़ाई में रिचर्ड तृतीय को हराकर सिंहासन पर अधिकार कर लिया और यार्क राजकुमारी एलिजाबेथ से विवाह कर 'गुलाबों के युद्ध' का अंत कर दिया।

हेनरी सप्तम के सम्मुख अपने राज्याधिकार को दृढ़ करने की समस्या थी, इसके हेतु जहाँ एक ओर तो उसने लैंबर्ट सिमनेल और पार्किन वारवेक जैसे राज्य के नकली दावेदारों क नाश किया, वहीं सामंतों की उपद्रवकारी शक्ति के विध्वंस के लिये वद विधान तथा भृत्य विधान बनाए। 'स्टार चेंबर' (नक्षत्रभवन) के न्यायालय की स्थापना और प्रिवी कौंसिल के शासन द्वारा उसने अपनी शक्तिवृद्धि की। पार्लिमेंट से उसने अच्छा संबंध बनाए रखा और यथाशक्ति उसकी कम से कम बैठकें बुलाईं। राजकीय व्यय चलाने के लिए पार्लियामेंट द्वारा स्वीकृत धन कें अतिरिक्त धनी और व्यापारी वर्गों से कर्ज, दान तथा अर्थदंड जैसे उपायों के साथ ही मितव्ययता का सहारा लिया। देश के आंतरिक प्रशासन में सशक्त राजतंत्र की उसने स्थापना की। उसके समय में कृषि और व्यापार की उन्नति तथा गरीबों एवं बेकारों के भरणपोषण की व्यवस्था की गई थी। वैदेशिक मामलों में तटस्थता और समकालीन राजपरिवारों से वैवाहिक संबंध की नीति का अबलंबन कर उसने राष्ट्रीय हित के संवर्धन के साथ ही परिवारिक प्रतिष्ठा में भी वृद्वि की।

हेनरी अष्टम

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हेनरी अष्टम (1509-1547 ई0) अपने पिता की मृत्यु के बाद राजा बना। वह अपने वंश का संभवत: सर्वाधिक महत्वाकांक्षी शासक था। विरासत में प्राप्त सुदृढ़ राजकीय शक्ति और संचित धनराशि का उपयोग कर उसने केवल दरबार की शानशौकत ही नहीं बढ़ाई, अपितु अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भी पूर्ण भाग लिया। उसके समकालीन प्रत्येक राजा की यह महत्वाकांक्षा थी कि वह रोम का पवित्र सम्राट बने। हेनरी भी इस दौड में पीछे न था, किंतु 1519 में उस पद के लिए होनेवाले चुनाव में स्पेन के चार्ल्स पंचम ने उसे पिछाड़ दिया। इसके पूर्व हेनरी ने स्पेन और फ्रांस के राजाओं का बारी बारी से पक्ष लेकर उन्हें एक दूसरे के विरुद्ध भिड़ाए रखने की नीति प्रारंभ कर दी थी। उसका मंत्री वुल्जे उस नीति के प्रयोग में दक्ष था और उसी से अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में शक्तिसंतुलन के सिद्धांत का प्रारंभ माना जाता है।

1527 ई. में हेनरी अष्टम के शासन का द्वितीय चरण प्रारंभ हुआ। उसकी रानी कैथरीन के कोई पुत्र संतान न थी। हेनरी उसे तलाक देना चाहता था। उसके लिये पोप की अनुज्ञा लेना आवश्यक था। किंतु पोप कैथरीन के भतीजे तथा रोमन सम्राट् चार्ल्स के भय से वैसी स्वीकृति देने में देरी करने लगा। हेनरी प्रतीक्षा करने के लिये तैयार न था। उसने अपने असफल मंत्री बुल्जे को पदच्युत कर दिया और पोप का इंग्लैंड पर धार्मिक प्रभुत्व मिटाने के लिये पार्लिमेंट बुलाई। क्रमश: उसने 'प्रथम फल' (Annates) का विधान, अपील का विधान, संप्रभुता का विधान और उत्तराधिकार का विधान जैसे अनेक विधानों को पारित किया। वस्तुत: हेनरी पोप को डराना मात्र चाहता था लेकिन पारिणाम अत्यंत दूरगामी सिद्ध हुआ। यद्धपि उसने देश के धार्मिक विश्वासों में विशेष परिवर्तन नहीं किए, तथापि धर्मसुधार की लहर एक बार चल चुकने के बाद लौटनेवाली न थी। 1529 से 1536 ई0 तक जो धर्मसुधार पार्लिमेंट उसने बुलाई उसके द्वारा पारित विधानों के फलस्वरूप इंग्लैंड की राजशक्ति पोप के अनेक नियंत्रणों से ही नहीं मुक्त हुई, उसके चर्च का रोम से विलगाव हो गया और अप्रत्यक्ष रूप से पार्लिमेंट की शक्ति भी मान्य हो गई।

एडवर्ड षष्ठम

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एडवर्ड षष्ठम (1547-1553 ई.) पिता हेनरी के तृतीय उत्तराधिकार के विधेयक (1544 ई.) के अनुसार 9 वर्ष की अवस्था में राज्यासीन हुआ। शासन प्राय: एक संरक्षक समिति के द्वारा चलता रहा, जिसक नेता सोमरसेट और नॉर्थबरलैंड के अर्ल थे। उसके समय की मुख्य विशेषता थी इंग्लैंड में प्युरिटन धर्म की स्थापना और धर्मसुधार की प्रगति। 1549 ई0 और 1552 ई0 में प्रार्थना संबंधी नए विधान पारित हुए और धार्मिक समानता लाने का प्रयत्न किया गया।

मेरी (1553-1558 ई.) एडवर्ड षष्ठ की 1553 ई. में मृत्यु के बाद इंग्लैंड की राजगद्दी की उत्तराधिकारणी बनी। वह कैथरीन से उत्पन्न हेनरी अष्टम की पुत्री थी। उसकी माँ के तलाक के प्रश्न को लेकर इंग्लैंउ मे धर्मसुधार प्रारंभ हुआ था जिससे मेरी के मन में प्रतिक्रिया की भावना थी। प्रोटेस्टेंट धर्म को समाप्त कर इंग्लैंड में पुन: कैथलिक धर्म और पोप का प्रभुत्व स्थापित करना उसका उद्देश्य हो गया। उस हेतु उसने एडवर्ड षष्ठ के समय के सभी धर्मसुधार विधानों का ही अंत नहीं किया, अपितु अपने पिता के अनेक तटस्थ और राजहितकारी सुधारों को भी वापस ले लिया। उससे भी आगे बढ़ उसने रोम से पुन: संबंध स्थापित कर पोप के प्रतिनिधि का इंग्लैंड में स्वागत किया ओर स्पेन के कैथलिक शासक फिलिप द्वितीय से विवाह किया। उसने प्राटेस्टेंटों को कठोर दंड दिया। लगभग 300 धर्मसुधारक भिक्षु जीवित जला दिए गए जिनमें मुख्य थे लैटिमर, रिडले और कैनमर। इसी कारण बाद में वह 'खूनी मेरी' कहलाई। पार्लियामेंट मेरी के इन कार्यों से प्रसन्न न थी। इसी बीच 1558 ई0 में फ्रांस के तट पर स्थित कैले का बंदरगाह भी उसके हाथों से निकल गया। विरोध की भावनाएँ उठ ही रही थीं कि नि:संतान मेरी की 1558 ई. में मृत्यु हो गई और इंग्लैंड गृहयुद्ध की एक भीषण अग्नि से बच गया।

एलिजाबेथ

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1558 ई. में सिंहासनारूढ़ हुई। उसने देश की धार्मिक समस्या के सुलझाने और अंग्रेजों की नवयुगीन महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के उपाय ढूँढ निकाले। उसने धार्मिक क्षेत्र में मध्यम मार्ग का अवलंबन किया और अपने पिता के समय की धार्मिक व्यवस्था को पुन:प्रचलित किया। रोम से संबंध विच्छिन्न कर संप्रभुता का विधान एडवर्ड षष्ठ के 42 धाराओंवाले विधान की तीन कटर्‌ सुधारवादी धाराओं को निकालकर 39 धराओं विधान और एकरूपता का विधान आदि उसकी धर्मव्यवस्था के मुख्य अंग थे, जिनसे इंग्लैंड में राष्ट्रीय आंग्लिकन चर्च की स्थापना हुई। इसके विरोधियों को, चाहे वे कैथलिक अथवा नान कॉनफार्स्मिट हों, 20 शिलिंग प्रति मास के अर्थदंड मात्र से मुक्ति मिल सकती थी। उस युग के लिये यह धार्मिक उदारता विशेष बात थी।

राजनीतिक क्षेत्र में एलिजावेथ न अपने पूर्वजों की तरह सशक्त राजतंत्र, कौंसिल द्वारा शासन और स्वतंत्र वैदेशिक नीति के सिद्धांतों का अनुसरण किया। इसीलिये उसने पार्लिमेंट की बैठकें कम बुलाईं। फ्रांस और स्पेन के राजाओं को विवाह का लालच देते हुए उसने उनको हमेशा धोखे में रखा। फ्रांस और स्काटलैंड मिलकर इंग्लैंड पर कोई आक्रमण न कर दें, इसकी भी वह चिंता करती थी। स्काटलैंड की रूपवती रानी मेरी के विरुद्ध होनेवाली षड्यंत्रों में भी उसका हाथ होने का संदेह किया जाता है। जब बेचारी मेरी स्काटलैंड से भाग कर इंग्लैंड आई तो उसे दो वर्षों तक कारागार में रहना पड़ा और अंत में उसे प्राणदंड दिया गया।

एलिजाबेथ की नीति और स्वतंत्र निर्णयों से पार्लियामेंट प्रसन्न नहीं रहती थी। उसने उसके विवाह के संबंध में कई प्रस्ताव किए जिन्हें वह ठुकराती रही। किंतु भाषण स्वातंत्रय और आर्थिक एकाधिकारों के लाइसेंसों की स्वीकृति के प्रश्न पर पार्लियामेंट के सम्मुख सम्राज्ञी को झुकना पड़ा। सौभाग्य से विदेशी भय के कारण जनसाधारण सर्वदा उसके अनुकूल रहा। 1588 ई. में जब स्पेन के कैथलिक राजा फिलिप द्वितीय ने इंग्लैंड पर आक्रमण करने के लिए अपना विकराल आर्मेडा भेजा तो सारा देश रानी के साथ हो गया। अंग्रेज नाविकों और प्रकृति ने मिलकर आर्मेडा को तितर-बितर कर दिया जिससे इंग्लैंड की सामरिक शक्ति की प्रतिष्ठा बढ़ी।

एलिजाबेथ का समय इंग्लैंड के इतिहास का स्वर्णयुग कहा जाता है। साहित्यगगन के देदीप्यमान सितारे शेक्सपियर, बेकन, मार्लो आदि ने महान्‌ अंग्रेजी साहित्य को जन्म दिया, रैले, हार्किस और ड्रैक जैसे नाविकों ने समुद्री जहाजों में बैठकर दुनिया की परिक्रमा की, जहाजी लूट से राजकोष भरा गया, उपनिवेश स्थापित हुए और व्यापार के लिए नई कंपनियाँ खोली गईं। देश की धनधान्य से पूर्णता, राजदरबार की शानशौकत में वृद्धि, विदेशों में प्रतिष्ठा, अन्य देशों के मुकाबले अपेक्षाकृत धार्मिक शांति और आधुनिक युग की अनेक गौरवमय उपलब्धियों से युक्त ट्यूडर शासन का अंत, एलिजाबेथ की मृत्यु के साथ, सन्‌ 1603 ई. में हो गया।

ट्यूडर राजवंश के शासक

सन्दर्भ ग्रंथ

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1. त्रिपाठी रा. प्र. : इंग्लैंड का इतिहास (सं. 1999),

2. ट्रेवेलियन : हिसट्री ऑव इंग्लैंड, (1952 ई0);

3. फिशर, एच. एफ. एल. : पोलिटिकल हिस्ट्री ऑव इंग्लैंड (1952 ई.);

4. पोलॉर्ड, एफ. : पोलिटिकल हिस्ट्री ऑफ इंग्लैंड, (1547-1603 ई.);

5. पालार्ड, एफ. : हेनरी अष्टम, क्रैंनमर, वुल्जे; 6. आइंस्टाइन : ट्यूडर आइडियल्स्‌;

7. विलियमसन जे. ए. : दि एज ऑव ड्रेक (1938 ई.);

8. कीर, डी. एल : दि कांस्टिट्यूशनल हिस्ट्री ऑव मार्डन ब्रिटेन (1953 ई.);

9. ऐडम्स्‌. जी. बी. : कांस्टिट्यूशनल हिस्ट्री ऑव इंग्लैंड।

बाहरी कड़ियाँ

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