तीर्थ
तीर्थ धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व वाले स्थानों को कहते हैं जहाँ जाने के लिए लोग लम्बी और अकसर कष्टदायक यात्राएँ करते हैं। इन यात्राओं को तीर्थयात्रा (pilgrimage) कहते हैं। जैन धर्म एवं हिन्दू धर्म के तीर्थ प्रायः तीर्थंकर एवं देवताओं के जन्म–निवास- मोक्ष स्थान महत्त्वपूर्ण तीर्थ हैं और इसके अतिरिक्त कई तीर्थ महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक व्यक्तियों के जीवन से भी सम्बन्धित हो सकते हैं। उदाहरण स्वरूप, मास्को में लेनिन की समाधि साम्यवादियों के लिए एक तीर्थ है।
हिन्दू धर्म के महत्त्वपूर्ण तीर्थ
[संपादित करें]भारत की सांस्कृतिक एकता को मजबूत करने हेतु आदि शंकराचार्य नें भारत के चार दिशाओं में चार धामों की स्थापना की। उत्तर में बद्रीनाथ, दक्षिण में रामेश्वरम, पूरब में जगन्नाथपुरी एवं पश्चिम में द्वारका - हिन्दुओं के चार धाम हैं। पूर्व में हिन्दू इन धामों की यात्रा करना अपना पवित्र कर्तव्य मानते थे। कालान्तर में हिन्दुओं के नये तीर्थ आते गये हैं।
- बद्रीनाथ
- द्वारका
- रामेश्वरम
- जगन्नाथ पुरी
- केदारनाथ
- गंगोत्री
- यमुनोत्री
- सोरों शूकरक्षेत्र
- वाराणसी
- शाकम्भरी देवी सहारनपुर
- प्रयाग
- ऋषिकेष
- हरिद्वार
- वैष्णो देवी
- बाबा धाम
- तिरुपति
- वृंदावन
- शिरडी
- गंगासागर
- पशुपतिनाथ
जैन तीर्थ
[संपादित करें]जैन धर्म भारत का अनाधिनिधन धर्म है, जैन धर्म में 24 तीर्थकर होते है। 24 तीर्थंकरो से संबंधित पवित्र स्थानों को जैन धर्म के अनुयायी तीर्थ की संज्ञा देते है। जैन धर्म मे जो तरे एवं तारे वो तीर्थ ऐसा कहा है। जैन धर्म का सबसे प्रमुख तीर्थ श्री सम्मेत शिखर जी महातीर्थ है, यहां से 20 तीर्थंकर के निर्वाण हुए है, शत्रुंजय और गिरनार जी भी जैनों के प्रमुख तीर्थ है। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ भगवान का जन्म अयोध्या में तथा निर्वाण अष्टापद से हुआ। इसी प्रकार 24 वें अंतिम तीर्थकर श्री महावीर भगवान का जन्म एवं निर्वाण कल्याणक क्रमशः क्षत्रियकुंड (जमुई, बिहार) एवं पावापुरी (बिहार) से हुआ था।
- सम्मेत शिखर जी
- गिरनार
- क्षत्रियकुंड
- पालीताना(शत्रुंजय)
- चंपापुर
- अष्टापद (कैलाश पर्वत)
- पावागढ़
- अयोध्या
- वाराणसी
- सारनाथ
- तारंगा
बौद्ध धर्म के तीर्थ
[संपादित करें]बौद्ध धर्म में चार तीर्थ सबसे महत्त्वपूर्ण हैं:
- कपिलवस्तु जहाँ गौतम बुद्ध का जन्म हुआ
- बोधगया जहाँ उन्हें ज्ञान-प्राप्ति हुई
- सारनाथ जहाँ उन्होंने सबसे पहला उपदेश दिया
- कुशीनगर जहाँ उनका परिनिर्वाण हुआ