देवपाल
देवपाल | |
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पाल राजवंश | |
कार्यकाल | ९वीं शताब्दी |
पूर्ववर्ती | धर्मपाल |
उत्तरवर्ती | महेन्द्रपाल |
जीवनसंगी | महता देवी (चहमान वंश के दुर्लभराज प्रथम की पुत्री) |
संतान | राज्यपाल महेन्द्रपाल शूरपाल प्रथम |
राजवंश | पाल राजवंश |
पिता | धर्मपाल |
माता | रन्नादेवी |
धर्म | बौद्ध धर्म[3] |
देवपाल (9वीं शताब्दी) भारतीय उपमहाद्वीप में बंगाल क्षेत्र का शासक था। वह इस वंश के तीसरे राजा थ और अपने पिता धर्मपाल के बाद साम्राज्य का उत्तराधिकारी बना। देवपाल ने वर्तमान ओडिशा, कश्मीर और अफगानिस्तान को जीतकर साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार किया। पाल अभिलेखों ने उन्हें कई अन्य विजयों का भी श्रेय दिया है। [4][5]
देवपाल ने लगभग पूरे उत्तर भारत को जीत लिया थ और उसे व्यावहारिक रूप से उत्तर भारत के नौवीं शताब्दी के उत्तरार्ध का सबसे शक्तिशाली सम्राट माना जाता था। उन्होने अपनी सेनाओं को दक्षिण में विंध्य और पश्चिम में सिंधु तक पहुँचाया। वह कभी भी परास्त नहीं हुए। एक महान विजेता होने के अलावा वह साहित्य, शिक्षा और संस्कृति के महान संरक्षक भी थे। उनके शासनकाल में बंगाल ने हर क्षेत्र में समृद्धि प्राप्त की। उनके शासनकाल के दौरान नालन्दा प्राचीन भारत में मुख्य शिक्षा केंद्र बन गया था। बौद्ध साहित्य के अध्ययन के लिए भारत के विभिन्न भागों और विदेशों से भी लोग नालन्दा महाविहार आए। बंगाल ने उनके शासनकाल में अभूतपूर्व प्रगति की थी। उनके शासनकाल में पालवंश का वर्चस्व अपने शिखर तक पहुंच गया। हालाँकि देवपाल की मृत्यु के कारण पाल वंश का पतन और विघटन हुआ।
देवपाल बौद्ध धर्म के अनुयायी थे किन्तु अन्य धार्मिक पंथों के प्रति अत्यन्त सहिष्णु थे और अपने साम्राज्य के भीतर अन्य धर्मों के विकास को बढ़ावा देते थे।कहा जाता है कि बौद्ध धर्म के प्रचार और भिक्षुओं के कल्याण और आराम के लिए बौद्ध मठों को पांच गाँव दिए गए थे। कहा जाता है कि उन्होंने मगध में कई मंदिरों और मठों का निर्माण भी किया था। जावा और सुमात्रा के शैलेन्द्र राजा बालापुत्रदेव ने नालंदा में एक मठ बनाने के लिए पाँच गाँवों का अनुदान माँगकर अपने राज्य में दूत भेजा था।
देवपाल एक योग्य और सक्षम शासक था। देवपाल ने अपने पिता से विरासत में जो विशाल राज्य प्राप्त किया था, उसे बरकरार रखा और अपने पिता के विशाल साम्राज्य में नया साम्राज्य भी मिलाया। बादल स्तम्भ शिलालेख उसे पूरे उत्तर भारत का सर्वोपरि स्वामी बताते हैं, जो हिमालय से लेकर विन्ध्य तक और पूर्वी से पश्चिमी समुद्र तक फैला हुआ था। उनके शासनकाल को उत्कल, हूण, गुर्जर और द्रविड़ों जैसे विरोधियों के खिलाफ सैन्य अभियानों के लिए जाना जाता है। “बादल स्तंभ शिलालेख” में दर्शाया गया है कि देवपाल के ब्राह्मण मंत्री दरभापाणि और केदार मित्र देवपाल के साम्राज्य के विस्तार में सहायक थे। बादल स्तंभ शिलालेख में यह भी दर्शाया गया है कि दरभापाणि ने अपनी कूटनीति का उपयोग करते हुए देवपाल को पूरे उत्तर भारत का स्वामी बना दिया था। देवपाल ने उत्कल, हूण और गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य को जीत लिया था। उन्होंने सीमांत राज्यों को जीतकर अपने पिता के साम्राज्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उसने हिंसक जनजाति 'खस' पर भी विजय प्राप्त कर ली थी। पूर्व में प्रागज्योतिष और कामरूप के राजा उनके जागीरदार बन गए। दक्षिण में उत्कल के राजा को युद्ध में हराया था। देवपाल ने दक्षिण भारत में द्रविड़ों पर विजय प्राप्त की थी। देवपाल ने पाला राजा देवपाल के विरोधी पांड्य राजा श्री वल्लभ को भी हराया। एक प्रशासक के रूप में देवपाल बहुत परोपकारी थे।
देवपाल सम्बन्धित प्रमुख तथ्य
[संपादित करें]देवपाल धर्मपाल का पुत्र एवं पाल वंश का उत्तराधिकारी था। इसे 810 ई. के लगभग पाल वंश की गद्दी पर बैठाया गया था। देवपाल ने लगभग 810 से 850 ई. तक सफलतापूर्वक राज्य किया। उसने 'प्राग्यज्योतिषपुर' (असम), उड़ीसा एवं नेपाल के कुछ भाग पर अधिकार कर लिया था। देवपाल की प्रमुख विजयों में गुर्जर प्रतिहार शासक मिहिर भोज पर प्राप्त विजय सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण थी। अरब यात्री सुलेमान ने देवपाल को राष्ट्रकूट एवं प्रतिहार शासकों में सबसे अधिक शक्तिशाली बताया है।
देवपाल ने 'मुंगेर' में अपनी राजधानी स्थापित की थी। 'बादल स्तम्भ' पर उत्कीर्ण लेख इस बात का दावा करता है कि, "उत्कलों की प्रजाति का सफाया कर दिया, हूणों का धमण्ड खण्डित किया और द्रविड़ तथा गुर्जर शासकों के मिथ्याभिमान को ध्वस्त कर दिया"।
प्रशासनिक कार्यों में देवपाल को अपने योग्य मंत्री 'दर्भपणि' तथा 'केदार मिश्र' से सहायता प्राप्त हुई तथा उसके सैनिक अभियानों में उसके चचेरे भाई 'जयपाल' ने उसकी सहायता की थी। देवपाल एक बौद्ध राजा था लेकिन हिंदू धर्म का भी सम्मान करता था। उसे भी 'परमसौगात' कहा गया है। जावा के शैलेन्द्र वंशी शासक 'वालपुदेव' के अनुरोध पर देवपाल ने उसे बौद्ध विहार बनवाने के लिए पाँच गाँव दान में दिये थे।
उसने 'नगरहार' (जलालाबाद) के प्रसिद्ध विद्धान 'वीरदेव' को 'नालन्दा विश्वविद्यालय' का प्रधान आचार्य नियुक्त किया।
यह भी देखे
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Chakrabarti, Dilip K. (1992). Ancient Bangladesh, a study of the archaeologcial sources. Internet Archive. Delhi ; New York : Oxford University Press. पृ॰ 74. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-19-562879-1.
- ↑ Rahman, Shah Sufi Mostafizur (2000). Archaeological Investigation in Bogra District: From Early Historic to Early Mediaeval Period (अंग्रेज़ी में). International Centre for Study of Bengal Art. पपृ॰ 50–51. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-984-8140-01-7.
- ↑ V. D. Mahajan (1970) [First published 1960]. Ancient India. पृ॰ 570. OCLC 1000593117.
- ↑ "Pala", Oxford Art Online, Oxford University Press, 2003, अभिगमन तिथि 2021-11-05
- ↑ पाल, सीमा; पाल, आभा रूपेन्द्र (2020-02-01). "आधुनिक काल मे महिला शिक्षा-समसामयिक संदर्भ में". Journal of Ravishankar University (PART-A). 23 (1): 47–51.