द फ़ेयरी क्वीन
द फ़ेयरी क्वीन (The Faerie Queene) १६वीं शताब्दी के प्रसिद्ध अंग्रेजी कवि एडमंड स्पेंसर की सर्वोत्तम रचना है। इस ग्रंथ के प्रणयन में उनका उद्देश्य रूपक के माध्यम से अरस्तू द्वारा वर्णित १२ नैतिक गुणों की महत्ता पर प्रकाश डालना था। पूरी पुस्तक १२ सर्गों में होती, लेकिन वे केवल छह सर्ग ही पूरा कर पाए। जिन नैतिक गुणों की इन छह सर्गों में चर्चा है वे क्रमश: इस प्रकार हैं - धार्मिकता, संयम, सतीत्व या पवित्रता, मित्रता, न्याय और विनम्रता। ७वें सर्ग के भी कुछ अंश मिलते हैं, जिसमें दृढ़ता की महत्ता पर प्रकाश पड़ता है।
स्पेंसर की कल्पना में पुस्तक की योजना इस प्रकार थी - परीलोक की रानी ग्लोरियाना प्रति वर्ष अपने दरबार में एक उत्सव करती है जिसमें रानी की सहायता के आकाँक्षी उत्पीड़ित जीव तथा ऐसे लोगों की सहायता करने के इच्छुक एक साथ एकत्र होते हैं। यह उत्सव साधारणतया १२ दिन चलता है। प्रत्येक को किसी दुखी प्राणी की सहायता के लिए कहा जाता है और इस कार्य में उसे बहुत सी कठिनाइयाँ झेलनी पड़ती हैं और साहसिक कार्य करने पड़ते हैं। 'फ़ेयरी क्वीन' के छ: सर्गों में दी हुई रूपक कहानियाँ ग्लोरियाना के दरबार के एक ऐसे ही उत्सव से संबंधित हैं।
स्पेंसर ने 'फेयरी क्वीन' की रचना आयरलैंड में प्रारंभ की और इसके प्रथम तीन सर्ग सन् १५९० में इंग्लैंड में प्रकाशित हुए। उनका मंतव्य रूपकों के सहारे व्यापक संसार तथा प्रत्येक मनुष्य के हृदय में चल रहे सत् प्रवृत्तियों और कुप्रवृत्तियों के बीच के संघर्ष को प्रदर्शित करना था। जैसा कि उन्होंने सर वाल्टर रैले के नाम अपने पत्र में घोषित किया, इस पुस्तक का उद्देश्य पाठकों को नैतिकता एवं सदाचरण में शिक्षित करना था।
लेकिन 'फ़ेयरी क्वीन' में रूपक का सहारा तत्कालीन राजनीति तथा शासन से संबंधित व्यक्तियों की चर्चा के लिए भी लिया गया है। परीदेश की रानी ग्लोरियाना के नाम पर कवि महारानी एलिजावेथ की प्रशस्ति गाता है। इसी प्रकार फ़ेयरी क्वीन के अन्य पात्र भी तत्कालीन राजनीतिक जीवन में प्रमुख व्यक्तियों के प्रतीक हैं।