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फिनोल

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फिनॉल (Phenol)
प्रणालीगत नाम Benzenol
अन्य नाम Carbolic acid
Phenylic acid
Hydroxybenzene
Phenic acid
पहचान आइडेन्टिफायर्स
सी.ए.एस संख्या [108-95-2][CAS]
पबकैम 996
ड्रग बैंक DB03255
केईजीजी D06536
रासा.ई.बी.आई 15882
RTECS number SJ3325000
SMILES
InChI
कैमस्पाइडर आई.डी 971
गुण
रासायनिक सूत्र C6H6O
मोलर द्रव्यमान 94.11 g mol−1
दिखावट Transparent crystalline solid
गंध Sweet and tarry
घनत्व 1.07 g/cm3
गलनांक

40.5 °C, 314 K, 105 °F

क्वथनांक

181.7 °C, 455 K, 359 °F

जल में घुलनशीलता 8.3 g/100 mL (20 °C)
log P 1.48[2]
वाष्प दबाव 0.4 mmHg (20 °C)[3]
अम्लता (pKa) 9.95 (in water),

29.1 (in acetonitrile)[4]

Dipole moment 1.224 D
खतरा
NFPA 704
2
3
0
 
Explosive limits 1.8–8.6%[3]
यू.एस अनुज्ञेय
अवस्थिति सीमा (पी.ई.एल)
TWA 5 ppm (19 mg/m3) [skin][3]
एलडी५० 317 mg/kg (rat, oral)
270 mg/kg (mouse, oral)[5]
जहां दिया है वहां के अलावा,
ये आंकड़े पदार्थ की मानक स्थिति (२५ °से, १०० कि.पा के अनुसार हैं।
ज्ञानसन्दूक के संदर्भ

फ़िनोल (IUPAC: Benzenol) एक एरोमैटिक कार्बनिक यौगिक है जिसका अणुसूत्र C6H5OH है। यह सफेद रंग का क्रिस्टलीय ठोस पदार्थ है। इसका अणु फिनाइल समूह (−C6H5) और हाइड्रॉक्सिल समूह (−OH) के आबन्धन से बना होता है। यह अल्प मात्रा में अम्लीय होता है तथा इसे सावधानीपूर्वक काम में लेना पड़ता है क्योंकि इससे रासायनिक जलन पैदा हो सकती है। फिनॉल एक महत्वपूर्न रासायनिक यौगिक है जिसके द्वारा अन्य अनेकों पदार्थ या यौगिक बनाए जाते हैं। यह प्रधानतः प्लास्टिक एवं उसी से सम्बन्धित पदार्थों के संश्लेषण में प्रयुक्त होता है। फिनॉल और इससे व्युत्पन्न यौगिक पॉलीकार्बोनेट, इपॉक्सी, बैकेलाइट, नाइलोन, डिटर्जेन्ट, शाकनाशी और अनेकों औषधियों के उत्पादन के लिए अत्यावश्यक है।

बेंजीन केंद्रक का एक या एक से अधिक हाइड्रोजन जब हाइड्रॉक्सिल समूह से विस्थापित होता है, तब उससे जो उत्पाद प्राप्त होते हैं उसे फिनोल कहते हैं। यदि केंद्रक में एक ही हाइड्रॉक्सिल रहे, तो उसे मोनोहाइ-ड्रिक फिनोल, दो हाइड्रॉक्सिल रहें तो उसे डाइहॉइड्रिक फिनोल और तीन हाइड्रॉक्सिल रहें, तो उसे ट्राइहाइड्रिक फिनोल कहते हैं।


अन्य नाम
Hydroxybenzene, Carbolic Acid, Benzenol, Phenylic Acid
Hydroxybenzene, Phenic acid, Phenyl alcohol

फिनॉल अम्लीय क्यों?

जब फिनोल H+ आयन प्रदान करता है तो फिनॉक्साइड आयन प्राप्त होता है यह आयन अनुनाद के कारण और अधिक स्थाई हो जाता है जिससे फिनॉक्साइड आयन तथा H+ के बीच पूर्ण मिलन नहीं होता है परिणाम स्वरुप फिनॉल अम्लीय गुण दर्शाता है

निर्माण

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मोनोहाइड्रिक फिनोल कोयले और काठ के शुष्क आसवन से बनते हैं। इसी विधि से व्यापार का कार्बोलिक अम्ल प्राप्त होता है। कार्बोलक अम्ल का आविष्कार पहले-पहले रूंगे (Runge) द्वारा 1834 ई. में हुआ था। 1840 ई. में लॉरें (Laurent) को अलकतरे में इसकी उपस्थिति का पता लगा। इसका फिनोल नाम ज़ेरार (Gerhardt) द्वारा 1843 ई. में दिया गया था। 1867 ई. में वुर्टस (Wurts) और केक्यूले (Kekule) द्वारा फिनोल बेंजीन से पहले पहल तैयार हुआ था।

फिनोल तैयार करने की अनेक विधियाँ मालूम हैं, पर आज फिनोल का व्यापारिक निर्माण अलकतरे या बेंजीन से होता है। अलकतरे के प्रभाजी आसवन से जो अंश 170 डिग्री सें 230 डिग्री सें. पर आसुत होता है उसे मध्य तेल या कार्बोलिक तेल कहते हैं। सामान्य फिनोल इसी में नैपथलीन के साथ मिला हुआ रहता है। दाहक क्षार के तनु विलयन से उपचारित करने से फिनोल विलयन में घुलकर निकल जाता है और नैफ़्थलीन अवलेय रह जाता है। विलयन के गन्धकाम्ल या कार्बन डाईऑक्साइड द्वारा विघटित करने से फिनोल अवक्षिप्त होकर जल से पृथक् हो जाता है। फीनाल का उत्पादन हैलोएरीन से भी किया जाता है

शुद्ध कार्बोलिक अम्ल सफेद, क्रिस्टलीय, सूच्याकार, ठोस होता है, पर, यह वायु में रखे रहने से पानी का अवशोषण कर द्रव बन जाता है, जिसका रंग पहले गुलाबी पीछे प्राय: काला हो जाता है। इसके क्रिस्टल 430 डिग्री सें. पर पिघलते हैं। यह जल में कुछ विलेय होता है। इसका जलीय विलयन निस्संक्रामक होता है और घावों तथा सर्जरी के उपकरणों आदि के धोने में प्रयुक्त होता है। फिनोल की गंध विशिष्ट होती है। यह विषैला होता है। अम्लों के साथ यह एस्टर बनाता है। इसके वाष्प को तप्त (390 डिग्री से 450 डिग्री सें.) थोरियम पर ले जाने से फिनोल ईथर बनता है। फिनोल के ईथर सरल या मिश्रित दोनों प्रकार के हो सकते हैं। फॉस्फोरस पेन्टाक्लोराइड के उपचार से यह क्लोरो बेंजीन बनता है। ब्रोमीन की क्रिया से यह ट्राइब्रोमो फिनोल बनता है। यह क्रिया मात्रात्मक होती है और फिनोल को अन्य पदार्थों से पृथक करने या फिनोल की मात्रा निर्धारित करने में प्रयुक्त होती है। फिनोल सक्रिय यौगिक है। अनेक अभिकर्मकों के साथ वह यौगिक बनता है। अनेक पदार्थों के संपर्क में आने से वह विशिष्ट रंग देता है, जिससे यह पहचाना जाता है।

फिनोल से सैलिसिलिक अम्ल और उसके एस्टर सैलोल आदि बड़े महत्व के व्यापारिक पदार्थ बनते हैं। इससे पिक्रिक अम्ल भी बनता है, जो एक समय बड़े महत्व का विस्फोटक और रंजक था। कृत्रिक रंजकों के निर्माण में भी कार्बोनिक अम्ल प्रयुक्त होता है। यह बड़े महत्व का निस्संक्रामक है। इससे अनेक जीवाणुनाशक, कवकनाशक, घासपात नाशक तथा अन्य बहुमूल्य ओषधियाँ आज तैयार होती हैं।

सन्दर्भ

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  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 8 अक्तूबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 दिसंबर 2019.
  2. "Phenol_msds". मूल से 4 जुलाई 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 दिसंबर 2019.
  3. "NIOSH Pocket Guide to Chemical Hazards #0493". National Institute for Occupational Safety and Health (NIOSH).
  4. Kütt, Agnes; Movchun, Valeria; Rodima, Toomas; Dansauer, Timo; Rusanov, Eduard B.; Leito, Ivo; Kaljurand, Ivari; Koppel, Juta; Pihl, Viljar; Koppel, Ivar; Ovsjannikov, Gea; Toom, Lauri; Mishima, Masaaki; Medebielle, Maurice; Lork, Enno; Röschenthaler, Gerd-Volker; Koppel, Ilmar A.; Kolomeitsev, Alexander A. (2008). "Pentakis(trifluoromethyl)phenyl, a Sterically Crowded and Electron-withdrawing Group: Synthesis and Acidity of Pentakis(trifluoromethyl)benzene, -toluene, -phenol, and -aniline". The Journal of Organic Chemistry. 73 (7): 2607–20. PMID 18324831. डीओआइ:10.1021/jo702513w.
  5. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; IDLH नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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