भदोही
भदोही Bhadohi | |
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निर्देशांक: 25°23′N 82°34′E / 25.39°N 82.56°Eनिर्देशांक: 25°23′N 82°34′E / 25.39°N 82.56°E | |
देश | भारत |
राज्य | उत्तर प्रदेश |
ज़िला | भदोही ज़िला |
ऊँचाई | 85 मी (279 फीट) |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 94,620 |
भाषाएँ | |
• प्रचलित | भोजपुरी, हिन्दी |
समय मण्डल | भामस (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 221401 |
वाहन पंजीकरण | UP-66 |
वेबसाइट | bhadohi |
भदोही (Bhadohi) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के भदोही ज़िले में स्थित एक नगर है। इस ज़िले का मुख्यालय सरपतहां, ज्ञानपुर में स्थित है।[1][2]
विवरण
[संपादित करें]यह कालीन निर्माण के लिये प्रसिद्ध है। भदोही क्षेत्र बुनकरों का घर है, जहाँ भोले-भाले परस से कितनी कलाकृतियाँ जन्म लेती हैं। बेलबूटेदार कलात्मक रंगों का इन्द्रधनुषी वैभव लिए हुए बेहद लुभावने गलीचे दुनिया के बाजारों में धाक जमाये हुए हैं। करोड़ों रुपये विदेशी मुद्रा अर्जित कराने तथा लाखों लोगों को रोजी रोटी मुहैया कराने वाले भदोही अंचल की अभिव्यक्ति कालीनों के माध्यम से होती है। आकर्षक कालीनों से ही भदोही को विश्व मानचित्र एवं हस्त कला के क्षेत्र में सर्वोच्च स्थान दिया है। भदोही जनपद वाराणसी जनपद का ही एक भाग था सन 2001 में विभाजित करके भदोही जनपद का नाम दिया गया का जिला मुख्यालय ज्ञानपुर है और इसमें 3 विधायकी के औराई ज्ञानपुर और भदोही एक बार पुनः सन 2009 में सुश्री मायावती जी के मुख्यमंत्री बनने पर इसका नामकरण किया गया और इसका नाम भदोही की जगह परिवर्तित करते संत रविदास नगर किया गया आज इस जनपद को संत रविदास नगर के नाम से भी जाना जाता है यह एक तरफ देश के सबसे छोटे जिलों में एक है यहां के निवासी लगभग स्वयं पर निर्भर रहते हैं लगभग 30% लोग यहां पर प्रवासियों के रूप में रहते हैं
परिचय
[संपादित करें]भदोही नगर गंगा तट से २१ किलोमीटर उत्तर में स्थित है। भदोही कालीन औद्योगिक परिक्षेत्र में अनेकों बाजार तथा उपनगर हैं जिसमें गोपीगंज, खमरिया, घोसिया, ज्ञानपुर, सुरियावां,जंघई,औराई एवं नई बाजार आदि मुख्य उपनगर अपनी अलग पहचान बनाए हुए उद्योग के विकास में तत्पर हैं। इसकी दक्षिण सीमा गंगा जी द्वारा परिभाषित है।
४०० साल पूर्व भदोही परगना में भरों का राज्य था, जिसके ड़ीह, कोट, खंडहर आज भी मौजूद हैं। भदोही नगर के अहमदगंज, कजियाता, पचभैया, जमुन्द मुहल्लों के मध्यम में स्थित बाड़ा, कोट मोहल्ले में ही भरों की राजधानी थी। भर जाति का राज्य इस क्षेत्र सहित आजमगढ़, बलिया, गाजीपुर, इलाहाबाद एवं जौनपुर आदि में भी था। गंगा तट पर बसे भदोही राज्य क्षेत्र में सबसे बड़ा राज्य क्षेत्र था। सुरियांवां, गोपीगंज, जंगीगंज, खमरिया, औराई, महाराजगंज, कपसेठी, चौरी, जंघई, बरौत, कोइरौना, कटरा, धनतुलसी आदि क्षेत्र भदोही राज्य में थे। गंगा तट का यह भाग जंगलों की तरह था। भदोही नाम भरद्रोही का अपभ्रंश है जिसका तात्पर्य है कि ऐसा क्षेत्र जिसका भरों से द्रोह है। भदोही के अतिरिक्त भरों के होने के प्रमाण विभिन्न गाँवों के नाम से भी प्रमाणित होता है, यथा-भरदुआर (भरद्वार), बरौत (भरौत), रायपुर, सागर रायपुर, भँटान आदि। बड़ागाँव, सगरा, बिछिया, जगापुर, रायपुर, भगवानपुर, डुहिया, सुरियावाँ, कौड़र, अंधेडीह (दुर्गागंज के पास), कसीदहाँ, कलनुआ, पाली आदि में भरों की बस्तियों के अवशेष टीले थे जिनमें से कुछ अब भी बचे हैं।
इसके अलावा ऊसरों की एक लम्बी शृंखला है जो कदाचित् किसी नदी का क्षेत्र रहा होगा। कदाचित् यह असी नदी का सूखा हुआ मार्ग था जिस पर बहुत बड़े-बड़े तालाब बनाये गये। मोरवा, बरना (वरुणा), कटइया आदि कुछ गंगा जी के अतिरिक्त नदियाँ थीं जो इस क्षेत्र से बहती थीं। जिसमें से मोरवा और कटइया (जो कदाचित असी नदी के चैनल का अवशेष है) अभी भी कहीं-कहीं बची रह गयी हैं। वरुणा का भी प्रवाह बाधित हो चुका है। [उद्धरण चाहिए]
धार्मिक स्थल
[संपादित करें]सीता समाहित स्थल सीतामढ़ी (माता सीता व लव-कुश), सेमराधनाथ (महादेव), बरम बाबा डुहिया (ब्राह्मण), सगरा (हनुमान जी), हरिहरनाथ ज्ञानपुर (महादेव), कबूतरनाथ गोपीगंज (महादेव), बेलनाथ बरौत (महादेव), खाखरनाथ जगापुर (महादेव), तिलेश्वरनाथ आनापुर (महादेव), आदिनाथ सुंदरपुर (महादेव), चकवा महावीर (हनुमान जी) भद्रेश्वर महादेव (उचेठा) कामख्या देवी आदि हैं।
साहित्यकार
[संपादित करें]नये साहित्यकारों में महादेवी अनुराधा पांडे (कविता, गीत, कहबतिया), अनिल शुक्ल (संस्मरण, कविता, गीत, कथा, लोक साहित्य), अरुण शूक्ल (कविता, गीत, कथा, संस्मरण, हास्य), डॉ. धीरज शुक्ल (कविता, कथा, व्यंग्य, हास्य, संस्मरण, लोककथा, कहकुतिया, लोकगीत) आदि विभिन्न विधाओं में रह कर साहित्य सृजन कर रहे हैं।
इतिहास
[संपादित करें]देश के महापराक्रमी हूणों के आक्रमण एवं अत्याचारों से काँप उठी थी। देश को आक्रमण कारी हूणों से घिरा देख कर भारशैव (भर) शासकों ने हूणों के आक्रमण का सामना करने की पूर्ण जिम्मेदारी अपने हाथों में ली। प्रति तीन-तीन मील पर प्रति रक्षात्मक गढ़ियों का निर्माण किया गया। भदोही क्षेत्र में प्रायः गाँव और कस्बों में आज भी उन गढ़ियों व तालाबों के ध्वंशावाशेष देखे जा सकते हैं। भदोही क्षेत्र की जनता के सहयोग से भार शैव (भर) राजाओं ने हूणों को आगे बढ़ने से रोक दिया तथा हूणों को क्षेत्र से पीछे हटना पडा। इसके बाद फिर हूणों ने भदोही क्षेत्र में आक्रमण करने का साहस नहीं किया। सागर राय भरों में सबसे सम्मानित पुरुष थे। चौदहवीं शताब्दी में जौनपुर के शर्की शासकों से खुले युद्ध में भरों की बहुत हानि हुई जिससे उनका राजनैतिक पतन हो गया।
जब भर जाति के राजा वहां के नागरिकों पर अत्याचार करने लगे और क्षेत्र की जनता भरों से टक्कर लेने की रणनीति बनाया तो उसी समय राजस्थान के राजपूत आक्रान्ता का काफिला काशी जा रहा था, यहाँ से होकर गुजरा। यहाँ की जनता ने उन राजपूत से भरों राजा के अत्याचार से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की, जिस पर वे राजी हो गए और राजपूत व भरों के बीच जमकर युद्ध हुआ। कालांतर में इन मौनस राजपूतों ने क्षेत्र में आक्रमण कर कब्जाकर लिए। बहुत से भर पूरब की ओर चले गये जो बचे थे वे अन्यान्य जातियों में विलीन हो गये। कुछ दशक पहले तक जो बचे-खुचे राजभर(राजभर) थे, उन सबका ब्राह्मण औ अन्यान्य जातियों में विलय हो गया। मौनस राजपूतों के वंशज अभी भी बघेलों में बचे हुए हैं।
अंग्रेजों के समय में यहाँ आज के ज्ञानपुर क्षेत्र में अदालत खुली जिसे कोर्ट कहा गया। पर जनता उसे कोट ही बुलाती रही। यही कोट बाद में काशी नरेश के सौजन्य से विद्यालय खुलने के बाद ज्ञानपुर कहलाया। मुगल काल में भदोही क्षेत्र सुरियावां के राजा कुलहिया के राज्य में था, जिसमें भदोही ताल्लुका चौथार या कुलहिया राजा के टीला व भग्नावशेष आज भी बावन बिगहिया (जल तारा) के पास मौजूद है।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "Uttar Pradesh in Statistics," Kripa Shankar, APH Publishing, 1987, ISBN 9788170240716
- ↑ "Political Process in Uttar Pradesh: Identity, Economic Reforms, and Governance Archived 2017-04-23 at the वेबैक मशीन," Sudha Pai (editor), Centre for Political Studies, Jawaharlal Nehru University, Pearson Education India, 2007, ISBN 9788131707975