मत
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]मत पु † संज्ञा पुं॰ [सं॰ मन्त्र]
१. सलाह । उ॰—(क) कंत सुन मंत कुल अंत किय अत, हानि हातो किजै हिय ये भरोसो भुज बीस को ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) मैं जो कहों कत सुनु मंत भगवत सों विमूख ह्वै बालि फल कौन लीन्हों ।—तुलसी (शब्द॰) । यौ॰—तंत मंत = (१) उद्योग । प्रयत्न । उ॰—के जिय तंत मंत सों हेरा । गयो हेराय जो वह भा मेरा ।—जायसी (शब्द॰) ।
२. तंत्र मत्र । उ॰—तत मंत उच्चार देवि दरसिय मझि हव्विय ।—पृ॰ रा॰, १ ।१२ ।
२. मत्र । सिद्धिदायक शब्दों का समूह । दे॰ 'मत्र—४' । उ॰— (क) सुनि आनंद्यौ चंद चित कीन मंत आरंभ । जप्प जाप हबि होम सब लाग्यो कज्ज असंभ ।—पृ॰ रा॰, ६ ।१४९ । (ख) चुगली कानाँ सुणण सूँ, मैलौ व्है गुर मंत ।—बाँकी॰ ग्रं॰, भा॰
२. पृ॰ ४९ ।
मत ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. निश्चित सिद्धांत । संमति । राय । मुहा॰—मत उपाना = सम्मति स्थिर करना । उ॰—करुना लखि वरुनानिधान ने मन यह मतो उपायो ।—(शब्द॰) ।
२. निर्वाचन में किसी के चुनाव या किसी प्रस्ताव आदि के पक्ष या विपक्ष में निर्धारित विधि से प्रकट किया हुआ विचार या संमति । यौ॰—मतगणना = मत वोटों की गिनती । मतदान = मत या वोट देना । मतभेद = राय या विचार की भिन्नता । उ॰—हिंदुस्तान में इतनी सहनिशीलता थी कि मतभेद होने पर भी लोग सबको उच्च स्थान देते थे ।—हिंदु॰ सभ्यता, पृ॰ १९१ । मतवाद = किसी विचार को लेकर उसका पक्षस्थापन । उ॰—साहित्य केवल मतवाद के प्रचार का साधन भो नहीं बना करता ।—न॰ सा॰ न॰ प्र॰,११ । मतसंग्रह = किसी प्रश्न पर मतदान के अधिकारियों का विचार संकलून । मतस्वातंत्र्य = राय या विचार की आजादी ।
३. धर्म । पंथ । मजहव । संप्रदाय ।
३. भाव । आशय । मतलब ।
४. ज्ञान ।
५. पूजा । अर्चा ।
मत ^२ वि॰
१. जिसकी पूजा की गई हो । पूजित । आचत ।
२. माना हुआ । संमत (को॰) ।
३. विचारित (को॰) ।
४. संमा- नित । आद्दत (को॰) ।
५. कुत्सित । खराब । बुरा ।
मत ^३ क्रि॰ वि॰ [सं॰ मा] निपेधवाचक शब्द । न । नहीं । जैसे,— (क) वहाँ मत जाया करो । (ख) इनसे मत बोलो ।
मत पु ^४ वि॰ [सं॰ मत्त] मतवाला । मत्त । उ॰—(क) जस कोउ मदिरा मत अस आदी ।—नंद॰ ग्रं॰, पृ॰ १३८ । (ख)
मत ^५ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ मति] दे॰ 'मति' । यौ॰—मतहीन = बृद्धिरहित । अज्ञागी । उ॰—साधू जीव करे उपकारा । जिव मतहीन उन्हीं को मारा ।—घट॰, पृ॰ २४० ।