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मिथुन

विक्षनरी से


प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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मिथुन संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. स्त्री और पुरुष का युग्म । मर्द और औरत का जोडा़ ।

२. संयोग । समागम ।

३. मेष आदि राशियों में से तीसरी राशि । विशेष—इस राशि में मृगशिरा नक्षत्र के अंतिम दो पाद, पूरा आर्द्रां और पुनर्वसु के आरंभिक तीन पाद हैं । इसके अधिष्ठाता देवता गदाधारी पुरुष और वीणाधारिणी स्त्री मानी गई है । इसका दूसरा नाम जितुम है ।

४. ज्योतिष में मेष आदि लग्नों में से तीतरा लग्न । विशेष— कहते हैं, इस लग्न में जन्म लेनेवाला प्रियभाषी, द्विमात्रिक, शत्रुओं का नाश करनेवाला, गुणी, धार्मिक, कार्यकुशल और प्राय:रोगी रहनेवाला होता है, और उसकी मृत्यु मनुष्य, साँप, जहर या पानी आदि के द्वारा होती है । यौ॰—मिथुनभाव = (१) जोड़ा बनाना । जोडा़ बनाने का भाव । (२) मैथुन । मिथुनयमक = धमक अलंकार का एक भेद । मिथुनविवाह = प्रचलित विवाह प्रथा । वह विवाह प्रथा जो आजकल चंल रही है । मिथुनव्रती = संयोगरत । संयोगस्थ ।