मुल्क में कोरोना वायरस के संकट के बीच एक नया विवाद सामने आ गया है। केरल में एक गर्भवती हथिनी की प... more मुल्क में कोरोना वायरस के संकट के बीच एक नया विवाद सामने आ गया है। केरल में एक गर्भवती हथिनी की पटाखों से भरा अनानास खाने से मौत का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। मीडिया और सोशल मीडिया में इस घटना को लेकर हंगामा मचा हुआ है। पिछले ढाई महीने में इतना हंगामा तब भी नहीं मचा जब लॉकडाउन से देश भर में लोग बुरी तरह प्रभावित हुए और करोड़ों प्रवासी मजदूरों को अपनी जान हथेली पर रख कर अपने घर लौटना पड़ा। क्वारेंटाइन सेंटरों पर बदइंतजामियों के सामने आने पर भी टीवी चैनलों के टीआरपी का पारा इतने ऊपर नहीं चढ़ा। यहां तक कि प्रवासी मजदूरों की विभिन्न दुर्घटनाओं में मौत भी आई-गई हो गई। लेकिन केरल में एक हथिनी की मौत से मानों तूफ़ान बरपा हो गया।
गुरु घासीदास जातिवाद और अछूत प्रथा के जड़-मूल से उन्मूलन के पक्षधर थे। वे मूर्ति पूजा, मंदिर और भक... more गुरु घासीदास जातिवाद और अछूत प्रथा के जड़-मूल से उन्मूलन के पक्षधर थे। वे मूर्ति पूजा, मंदिर और भक्ति को भी ख़ारिज करते थे। उस काल में यह एक क्रांतिकारी सोच थी। गोल्डी एम. जॉर्ज बता रहे हैं कि गुरु घासीदास ने किस तरह छत्तीसगढ़ की दमित जनता में आत्मगर्व और आत्मसम्मान के भाव जगाए
This introductory chapter delves into the essence of questions surrounding the notion of disaster... more This introductory chapter delves into the essence of questions surrounding the notion of disasters, examining whether they can be studied and understood in isolation from social, cultural, historical, political and ethical imaginations. What is the meaning of disaster; why and for whom is a phenomenon so termed? It stresses the need to go beyond the current dominant view of disasters, based on instrumental rationality. Cultural and anthropological perspectives are largely ignored by “scientific literature”, resulting in the study of disasters becoming largely event centric, bounded by space and geography. The chapter brings into focus the role of intersectional knowledge in disaster studies and the need for transdisciplinarity in order to understand the present world and disasters, going beyond the contemporary inter- and multidisciplinary approaches. It suggests that this opens up multiple meaning-making possibilities.
... In Dhanbad BCCL spent Rs. 2000 crores on machinery and equipment but it lay unused at a depre... more ... In Dhanbad BCCL spent Rs. 2000 crores on machinery and equipment but it lay unused at a depreciation rate of Rs. 3 lakh a day. ... The labour employment in the sector has increased ten folds from 0.32 lakhs in 1950 to about 3.25 lakh in 1993. ...
The Maoist belt in India is a conflict zone layered with the complexities of socio-economic vulne... more The Maoist belt in India is a conflict zone layered with the complexities of socio-economic vulnerabilities of the communities, industrial interests of the national and state economies and the rise of militancy in opposition to the government. Chhattisgarh is one such state plagued by decades of armed conflict between the Maoist groups and the government at various levels. Caught in the crossfire between these two entities, the Adivasi and the indigenous Dalit communities are left exploited and marginalised. The origins of this conflict, however, can be traced back to the planned mining activity initiated by the newly Independent India in an effort to stimulate economic growth through industrial production. Over decades, the exploitative practices supplemented by economic policies have led to large-scale displacement of the local communities, forcing them into Maoist militancy and ultimately leaving them the worst off.
हाल में, भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने दो वर्ष में एक बार प्रकाशित ह... more हाल में, भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने दो वर्ष में एक बार प्रकाशित होने वाली इंडिया स्टेट ऑफ़ फारेस्ट रिपोर्ट (भारत वन स्थिति रिपोर्ट) 2019 जारी की। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पिछले दो वर्षों में भारत के वन क्षेत्र में 5,188 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है। रिपोर्ट जारी करते हुए, केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि 2017 की तुलना में देश के कार्बन स्टॉक (कार्बन की वह मात्रा जो वृक्ष वातावरण से हटाते हैं) में 4.26 करोड़ टन की वृद्धि हुई है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि उत्तर-पूर्वी भारत में वन क्षेत्र में 765 वर्ग किलोमीटर (0.45 प्रतिशत) की कमी आयी है।
गोल्डी एम. जॉर्ज लिखते है कि हाल में जारी इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट की रिपोर्ट को ध्यानपूर्वक पढ़ने और अन्य अध्ययनों से उसकी तुलना करने से यह साफ़ जाहिर होता है कि सरकार दरअसल इस तथ्य को छुपाने का प्रयास कर रही है कि समृद्ध जैव विविधता वाले वनों का क्षेत्रफल घटता जा रहा है। इन वनों का स्थान पर एक ही प्रजाति के वृक्षों वाले व्यावसायिक बागान ले रहे हैं
Recently, the Ministry of Environment, Forests and Climate Change (MoEFCC) released the 2019 edit... more Recently, the Ministry of Environment, Forests and Climate Change (MoEFCC) released the 2019 edition of the biennial India State of Forest Report in New Delhi. The report claims that forest cover has increased by 5,188 square kilometres in the past two years. Releasing the report, Prakash Javadekar, union minister of environment, forests and climate change, said there was an increase of 42.6 million tonnes in the carbon stock (carbon removed from the atmosphere) of the country as compared to the last assessment of 2017. He also said that the current assessment shows a decrease of forest cover to the extent of 765 sq km (0.45 per cent) in Northeast India.
The recently released India State of Forest Report made the headlines for the finding that the forest cover has been increasing. The fine print of the report and other studies though suggest that the government is covering up the continuing loss of richly biodiverse forests with data on the increasing commercial monoculture plantations that leave Adivasis out of the picture, reports Goldy M. George
गत 10 जनवरी, 2020 से देश में सीएए को लागू कर दिया गया है। यह इसके बावजूद कि देश भर में इसका व्याप... more गत 10 जनवरी, 2020 से देश में सीएए को लागू कर दिया गया है। यह इसके बावजूद कि देश भर में इसका व्यापक विरोध हो रहा है और कई राज्य सरकारों ने इसे लागू नहीं करने की बात कही है। इन सबके बीच गोल्डी एम. जार्ज बता रहे हैं कि बहिष्करण पर आधारित नया नागरिकता कानून क्यों और कैसे बनाया गया? साथ ही यह भी कि इस कानून में ताजा परिवर्तनों के क्या निहितार्थ हैं.
नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) 2019 का राष्ट्रव्यापी विरोध हो रहा है और हजारों नागरिक सड़कों पर उतर कर इस नए कानून के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे हैं. कई राज्य सरकारों ने इसकी खिलाफत करने हुए यह घोषणा कर दी है कि वे अपने राज्यों में इसे लागू नहीं करेंगे. और इनमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भाजपा के गठबंधन साथियों के नेतृत्व वाली सरकारें भी शामिल हैं.
How did the exclusionary citizenship law of today come to be? Goldy M. George traces the birth of... more How did the exclusionary citizenship law of today come to be? Goldy M. George traces the birth of the Citizenship Act and the several amendments it underwent over the years and explains the implications of the hotly debated latest amendment.
The Citizenship (Amendment) Act (CAA) 2019 has sparked a nationwide protest with thousands taking to the streets across the country. Many state governments have already registered their opposition and have announced that they would not implement the Act in their respective territories. These include state governments led by allies of Prime Minister Narendra Modi’s Bharatiya Janata Party (BJP).
Guru Ghasidas sought complete liberation from casteism and untouchability with his rejection of i... more Guru Ghasidas sought complete liberation from casteism and untouchability with his rejection of idol worship, temples and “bhakti”. It was radical for his times. Goldy M. George tells the story of how he instilled pride and self-respect among the oppressed masses of Chhattisgarh
कैसे हेमंत सोरेन सरकार की पहली कैबिनेट की बैठक के निर्णय आदिवासियों के संघर्षों की स्वीकृति है? आ... more कैसे हेमंत सोरेन सरकार की पहली कैबिनेट की बैठक के निर्णय आदिवासियों के संघर्षों की स्वीकृति है? आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन के संघर्ष को स्वीकृति प्रदान करने की दिशा में मुंख्यमंत्री सोरेन द्वारा उठाया गया यह पहला महत्वपूर्ण कदम है. इस दिशा में भविष्य में बहुत कुछ किया जाना बाकी हैकैसे हेमंत सोरेन सरकार की पहली कैबिनेट की बैठक के निर्णय आदिवासियों के संघर्षों की स्वीकृति है. आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन के संघर्ष को स्वीकृति प्रदान करने की दिशा में मुंख्यमंत्री सोरेन द्वारा उठाया गया यह पहला महत्वपूर्ण कदम है. इस दिशा में भविष्य में बहुत कुछ किया जाना बाकी है
वाल्टर फर्नांडिस का कहना है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम, उत्तरपूर्वी भारत के आदिवासियों की भाषा, स... more वाल्टर फर्नांडिस का कहना है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम, उत्तरपूर्वी भारत के आदिवासियों की भाषा, संस्कृति और पहचान के लिए खतरा है. वे इस दावे से सहमत नहीं है कि बांग्लादेशी, भारत के उत्तरपूर्वी राज्यों में इसलिए आ रहे हैं क्योंकि वे अपने देश में धार्मिक प्रताड़ना के शिकार हैं. उनका मानना है कि वे कृषि भूमि की तलाश में भारत आ रहे हैं. प्रस्तुत है गोल्डी एम. जॉर्ज के साथ उनकी बात-चीत का सम्पादित अंश
Walter Fernandes says the Citizenship (Amendment) Act 2019 clearly poses a threat to Tribal langu... more Walter Fernandes says the Citizenship (Amendment) Act 2019 clearly poses a threat to Tribal language, culture and identity in Northeast India. He dismisses the theory that the migration to the Northeast is the result of religious persecution in Bangladesh. The Bangladeshis come for land.
सन् 1927 के 25 दिसंबर को, जब पूरी दुनिया, शांति और मुक्ति के दूत का जन्मदिन मना रही थी, उसी दिन ड... more सन् 1927 के 25 दिसंबर को, जब पूरी दुनिया, शांति और मुक्ति के दूत का जन्मदिन मना रही थी, उसी दिन डॉ. आंबेडकर ने उस पुस्तक के दहन का नेतृत्व किया जो भारत में दासता को औचित्यपूर्ण ठहराती थी. आज, भारत के इतिहास के इस महत्वपूर्ण मोड़ पर, जब ब्राह्मणवाद अपना सिर उठा रहा है, हमें मार्गदर्शन के लिए आंबेडकर की ओर देखना होगा क्योंकि उन्होंने भारत को जाति और वर्ग मुक्त, धर्मनिरपेक्ष प्रजातंत्र बनाने के लिए लम्बा और कठिन संघर्ष किया था. हिन्दू धर्म में रहते हुए अछूतों को समानता दिलवाने की कोई संभावना नज़र न आने पर, आंबेडकर ने उस संहिता के दहन का नेतृत्व किया, जो इस धर्म को एक बनाती थी. यह कदम उनके इस निर्णय का प्रतीक था कि वे एक हिन्दू के रूप में मरना नहीं चाहते.
On 25 December 1927, when the world was celebrating the birth of the prince of peace and liberati... more On 25 December 1927, when the world was celebrating the birth of the prince of peace and liberation, Dr Ambedkar led in the burning of the book that legitimized the code of slavery in India. Today at this critical juncture in India’s history, where there is resurgence of the order of the brahmanical dwij (twice-born), it is essential to look for guidance from Ambedkar who fought hard to convert India into a casteless, classless and secular democracy. Having exhausted all possibilities of achieving equality for the Untouchables within Hinduism, Ambedkar led in the burning of the code that held the religion together. This act symbolized his decision that he would not die a Hindu.
Bhante Suniti dismisses CAA 2019 as unconstitutional. She says it not only targets Muslims but al... more Bhante Suniti dismisses CAA 2019 as unconstitutional. She says it not only targets Muslims but also SCs, STs, OBCs and the illiterate and the landless at large. After the enactment of the Citizen’s Amendment Bill 2019, the issue of citizenship has been on the boil all over the country. Across India people are up in arms. The situation in other parts of the country is far from normal. Dalits, Adivasis, OBCs, Muslims, working class – all are agitated over it. Given this scenario, Dalitbahujans need to be heard and we have been publishing a series of interviews with the leaders, activists and thinkers among them. She spoke to Forward Press Consulting Editor Goldy M. George speaks.
लम्बे समय से राज्य द्वारा आदिवासियों के विरुद्ध उठाये जा रहे असंवैधानिक क़दमों के खिलाफ सांस्कृति... more लम्बे समय से राज्य द्वारा आदिवासियों के विरुद्ध उठाये जा रहे असंवैधानिक क़दमों के खिलाफ सांस्कृतिक प्रतिरोध का रास्ता तलाशते हुए आदिवासी परगनाओं और पंचायतों ने गंभीर चर्चा के बाद पत्थलगड़ी को चुना. पत्थलगड़ी के ज़रिए आदिवासियों ने अपने संवैधानिक अधिकारों का उद्घोष किया और ज़मीन के भूखे कॉर्पोरेट्स का प्रतिरोध करने के लिए स्वयं को सशक्त किया
मुल्क में कोरोना वायरस के संकट के बीच एक नया विवाद सामने आ गया है। केरल में एक गर्भवती हथिनी की प... more मुल्क में कोरोना वायरस के संकट के बीच एक नया विवाद सामने आ गया है। केरल में एक गर्भवती हथिनी की पटाखों से भरा अनानास खाने से मौत का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। मीडिया और सोशल मीडिया में इस घटना को लेकर हंगामा मचा हुआ है। पिछले ढाई महीने में इतना हंगामा तब भी नहीं मचा जब लॉकडाउन से देश भर में लोग बुरी तरह प्रभावित हुए और करोड़ों प्रवासी मजदूरों को अपनी जान हथेली पर रख कर अपने घर लौटना पड़ा। क्वारेंटाइन सेंटरों पर बदइंतजामियों के सामने आने पर भी टीवी चैनलों के टीआरपी का पारा इतने ऊपर नहीं चढ़ा। यहां तक कि प्रवासी मजदूरों की विभिन्न दुर्घटनाओं में मौत भी आई-गई हो गई। लेकिन केरल में एक हथिनी की मौत से मानों तूफ़ान बरपा हो गया।
गुरु घासीदास जातिवाद और अछूत प्रथा के जड़-मूल से उन्मूलन के पक्षधर थे। वे मूर्ति पूजा, मंदिर और भक... more गुरु घासीदास जातिवाद और अछूत प्रथा के जड़-मूल से उन्मूलन के पक्षधर थे। वे मूर्ति पूजा, मंदिर और भक्ति को भी ख़ारिज करते थे। उस काल में यह एक क्रांतिकारी सोच थी। गोल्डी एम. जॉर्ज बता रहे हैं कि गुरु घासीदास ने किस तरह छत्तीसगढ़ की दमित जनता में आत्मगर्व और आत्मसम्मान के भाव जगाए
This introductory chapter delves into the essence of questions surrounding the notion of disaster... more This introductory chapter delves into the essence of questions surrounding the notion of disasters, examining whether they can be studied and understood in isolation from social, cultural, historical, political and ethical imaginations. What is the meaning of disaster; why and for whom is a phenomenon so termed? It stresses the need to go beyond the current dominant view of disasters, based on instrumental rationality. Cultural and anthropological perspectives are largely ignored by “scientific literature”, resulting in the study of disasters becoming largely event centric, bounded by space and geography. The chapter brings into focus the role of intersectional knowledge in disaster studies and the need for transdisciplinarity in order to understand the present world and disasters, going beyond the contemporary inter- and multidisciplinary approaches. It suggests that this opens up multiple meaning-making possibilities.
... In Dhanbad BCCL spent Rs. 2000 crores on machinery and equipment but it lay unused at a depre... more ... In Dhanbad BCCL spent Rs. 2000 crores on machinery and equipment but it lay unused at a depreciation rate of Rs. 3 lakh a day. ... The labour employment in the sector has increased ten folds from 0.32 lakhs in 1950 to about 3.25 lakh in 1993. ...
The Maoist belt in India is a conflict zone layered with the complexities of socio-economic vulne... more The Maoist belt in India is a conflict zone layered with the complexities of socio-economic vulnerabilities of the communities, industrial interests of the national and state economies and the rise of militancy in opposition to the government. Chhattisgarh is one such state plagued by decades of armed conflict between the Maoist groups and the government at various levels. Caught in the crossfire between these two entities, the Adivasi and the indigenous Dalit communities are left exploited and marginalised. The origins of this conflict, however, can be traced back to the planned mining activity initiated by the newly Independent India in an effort to stimulate economic growth through industrial production. Over decades, the exploitative practices supplemented by economic policies have led to large-scale displacement of the local communities, forcing them into Maoist militancy and ultimately leaving them the worst off.
हाल में, भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने दो वर्ष में एक बार प्रकाशित ह... more हाल में, भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने दो वर्ष में एक बार प्रकाशित होने वाली इंडिया स्टेट ऑफ़ फारेस्ट रिपोर्ट (भारत वन स्थिति रिपोर्ट) 2019 जारी की। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पिछले दो वर्षों में भारत के वन क्षेत्र में 5,188 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है। रिपोर्ट जारी करते हुए, केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि 2017 की तुलना में देश के कार्बन स्टॉक (कार्बन की वह मात्रा जो वृक्ष वातावरण से हटाते हैं) में 4.26 करोड़ टन की वृद्धि हुई है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि उत्तर-पूर्वी भारत में वन क्षेत्र में 765 वर्ग किलोमीटर (0.45 प्रतिशत) की कमी आयी है।
गोल्डी एम. जॉर्ज लिखते है कि हाल में जारी इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट की रिपोर्ट को ध्यानपूर्वक पढ़ने और अन्य अध्ययनों से उसकी तुलना करने से यह साफ़ जाहिर होता है कि सरकार दरअसल इस तथ्य को छुपाने का प्रयास कर रही है कि समृद्ध जैव विविधता वाले वनों का क्षेत्रफल घटता जा रहा है। इन वनों का स्थान पर एक ही प्रजाति के वृक्षों वाले व्यावसायिक बागान ले रहे हैं
Recently, the Ministry of Environment, Forests and Climate Change (MoEFCC) released the 2019 edit... more Recently, the Ministry of Environment, Forests and Climate Change (MoEFCC) released the 2019 edition of the biennial India State of Forest Report in New Delhi. The report claims that forest cover has increased by 5,188 square kilometres in the past two years. Releasing the report, Prakash Javadekar, union minister of environment, forests and climate change, said there was an increase of 42.6 million tonnes in the carbon stock (carbon removed from the atmosphere) of the country as compared to the last assessment of 2017. He also said that the current assessment shows a decrease of forest cover to the extent of 765 sq km (0.45 per cent) in Northeast India.
The recently released India State of Forest Report made the headlines for the finding that the forest cover has been increasing. The fine print of the report and other studies though suggest that the government is covering up the continuing loss of richly biodiverse forests with data on the increasing commercial monoculture plantations that leave Adivasis out of the picture, reports Goldy M. George
गत 10 जनवरी, 2020 से देश में सीएए को लागू कर दिया गया है। यह इसके बावजूद कि देश भर में इसका व्याप... more गत 10 जनवरी, 2020 से देश में सीएए को लागू कर दिया गया है। यह इसके बावजूद कि देश भर में इसका व्यापक विरोध हो रहा है और कई राज्य सरकारों ने इसे लागू नहीं करने की बात कही है। इन सबके बीच गोल्डी एम. जार्ज बता रहे हैं कि बहिष्करण पर आधारित नया नागरिकता कानून क्यों और कैसे बनाया गया? साथ ही यह भी कि इस कानून में ताजा परिवर्तनों के क्या निहितार्थ हैं.
नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) 2019 का राष्ट्रव्यापी विरोध हो रहा है और हजारों नागरिक सड़कों पर उतर कर इस नए कानून के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे हैं. कई राज्य सरकारों ने इसकी खिलाफत करने हुए यह घोषणा कर दी है कि वे अपने राज्यों में इसे लागू नहीं करेंगे. और इनमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भाजपा के गठबंधन साथियों के नेतृत्व वाली सरकारें भी शामिल हैं.
How did the exclusionary citizenship law of today come to be? Goldy M. George traces the birth of... more How did the exclusionary citizenship law of today come to be? Goldy M. George traces the birth of the Citizenship Act and the several amendments it underwent over the years and explains the implications of the hotly debated latest amendment.
The Citizenship (Amendment) Act (CAA) 2019 has sparked a nationwide protest with thousands taking to the streets across the country. Many state governments have already registered their opposition and have announced that they would not implement the Act in their respective territories. These include state governments led by allies of Prime Minister Narendra Modi’s Bharatiya Janata Party (BJP).
Guru Ghasidas sought complete liberation from casteism and untouchability with his rejection of i... more Guru Ghasidas sought complete liberation from casteism and untouchability with his rejection of idol worship, temples and “bhakti”. It was radical for his times. Goldy M. George tells the story of how he instilled pride and self-respect among the oppressed masses of Chhattisgarh
कैसे हेमंत सोरेन सरकार की पहली कैबिनेट की बैठक के निर्णय आदिवासियों के संघर्षों की स्वीकृति है? आ... more कैसे हेमंत सोरेन सरकार की पहली कैबिनेट की बैठक के निर्णय आदिवासियों के संघर्षों की स्वीकृति है? आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन के संघर्ष को स्वीकृति प्रदान करने की दिशा में मुंख्यमंत्री सोरेन द्वारा उठाया गया यह पहला महत्वपूर्ण कदम है. इस दिशा में भविष्य में बहुत कुछ किया जाना बाकी हैकैसे हेमंत सोरेन सरकार की पहली कैबिनेट की बैठक के निर्णय आदिवासियों के संघर्षों की स्वीकृति है. आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन के संघर्ष को स्वीकृति प्रदान करने की दिशा में मुंख्यमंत्री सोरेन द्वारा उठाया गया यह पहला महत्वपूर्ण कदम है. इस दिशा में भविष्य में बहुत कुछ किया जाना बाकी है
वाल्टर फर्नांडिस का कहना है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम, उत्तरपूर्वी भारत के आदिवासियों की भाषा, स... more वाल्टर फर्नांडिस का कहना है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम, उत्तरपूर्वी भारत के आदिवासियों की भाषा, संस्कृति और पहचान के लिए खतरा है. वे इस दावे से सहमत नहीं है कि बांग्लादेशी, भारत के उत्तरपूर्वी राज्यों में इसलिए आ रहे हैं क्योंकि वे अपने देश में धार्मिक प्रताड़ना के शिकार हैं. उनका मानना है कि वे कृषि भूमि की तलाश में भारत आ रहे हैं. प्रस्तुत है गोल्डी एम. जॉर्ज के साथ उनकी बात-चीत का सम्पादित अंश
Walter Fernandes says the Citizenship (Amendment) Act 2019 clearly poses a threat to Tribal langu... more Walter Fernandes says the Citizenship (Amendment) Act 2019 clearly poses a threat to Tribal language, culture and identity in Northeast India. He dismisses the theory that the migration to the Northeast is the result of religious persecution in Bangladesh. The Bangladeshis come for land.
सन् 1927 के 25 दिसंबर को, जब पूरी दुनिया, शांति और मुक्ति के दूत का जन्मदिन मना रही थी, उसी दिन ड... more सन् 1927 के 25 दिसंबर को, जब पूरी दुनिया, शांति और मुक्ति के दूत का जन्मदिन मना रही थी, उसी दिन डॉ. आंबेडकर ने उस पुस्तक के दहन का नेतृत्व किया जो भारत में दासता को औचित्यपूर्ण ठहराती थी. आज, भारत के इतिहास के इस महत्वपूर्ण मोड़ पर, जब ब्राह्मणवाद अपना सिर उठा रहा है, हमें मार्गदर्शन के लिए आंबेडकर की ओर देखना होगा क्योंकि उन्होंने भारत को जाति और वर्ग मुक्त, धर्मनिरपेक्ष प्रजातंत्र बनाने के लिए लम्बा और कठिन संघर्ष किया था. हिन्दू धर्म में रहते हुए अछूतों को समानता दिलवाने की कोई संभावना नज़र न आने पर, आंबेडकर ने उस संहिता के दहन का नेतृत्व किया, जो इस धर्म को एक बनाती थी. यह कदम उनके इस निर्णय का प्रतीक था कि वे एक हिन्दू के रूप में मरना नहीं चाहते.
On 25 December 1927, when the world was celebrating the birth of the prince of peace and liberati... more On 25 December 1927, when the world was celebrating the birth of the prince of peace and liberation, Dr Ambedkar led in the burning of the book that legitimized the code of slavery in India. Today at this critical juncture in India’s history, where there is resurgence of the order of the brahmanical dwij (twice-born), it is essential to look for guidance from Ambedkar who fought hard to convert India into a casteless, classless and secular democracy. Having exhausted all possibilities of achieving equality for the Untouchables within Hinduism, Ambedkar led in the burning of the code that held the religion together. This act symbolized his decision that he would not die a Hindu.
Bhante Suniti dismisses CAA 2019 as unconstitutional. She says it not only targets Muslims but al... more Bhante Suniti dismisses CAA 2019 as unconstitutional. She says it not only targets Muslims but also SCs, STs, OBCs and the illiterate and the landless at large. After the enactment of the Citizen’s Amendment Bill 2019, the issue of citizenship has been on the boil all over the country. Across India people are up in arms. The situation in other parts of the country is far from normal. Dalits, Adivasis, OBCs, Muslims, working class – all are agitated over it. Given this scenario, Dalitbahujans need to be heard and we have been publishing a series of interviews with the leaders, activists and thinkers among them. She spoke to Forward Press Consulting Editor Goldy M. George speaks.
लम्बे समय से राज्य द्वारा आदिवासियों के विरुद्ध उठाये जा रहे असंवैधानिक क़दमों के खिलाफ सांस्कृति... more लम्बे समय से राज्य द्वारा आदिवासियों के विरुद्ध उठाये जा रहे असंवैधानिक क़दमों के खिलाफ सांस्कृतिक प्रतिरोध का रास्ता तलाशते हुए आदिवासी परगनाओं और पंचायतों ने गंभीर चर्चा के बाद पत्थलगड़ी को चुना. पत्थलगड़ी के ज़रिए आदिवासियों ने अपने संवैधानिक अधिकारों का उद्घोष किया और ज़मीन के भूखे कॉर्पोरेट्स का प्रतिरोध करने के लिए स्वयं को सशक्त किया
A Fact Finding Investigation Report of the Dalit Mukti Morcha on the custodial death of a Dalit y... more A Fact Finding Investigation Report of the Dalit Mukti Morcha on the custodial death of a Dalit youth. On 1st October, 2004 in Mathani Khurd village someone fired in darkness of the night. The bullet wounded the leg of one Jethuram Kevat. On 5th October, 2004, Bannu Satnami was detained by the police for enquiry in the firing case of “Makhani Khurd”. The next day his dead body was recovered outside the police station. The postmortem report and the identification made by the people clearly tells that his one ear was badly damaged and bleeding, his one eye was injured beyond recognition and he had also sustained grave injuries in his private parts. All these clearly establish the fact that his had died while in police custody.
This is a fact-finding investigation report on the attack on Dalits settlement in Gaudh village ... more This is a fact-finding investigation report on the attack on Dalits settlement in Gaudh village of Janjgir-Champa district in Chhattisgarh. The report, based on primary research, goes in deep to understand the caste complexity in the rural areas of Chhattisgarh. It details the facts of the particular incident as well as the process by which the stage was prepared in the process. Gaudh is a classical example to understand the Hindu system of godship and god phobia that draws people into the centre and then throws them off as a garbage as untouchables. These altogether builds the undercurrents that grooms and breeds in the entire country bereft of the differentiation of urban-rural divide. How the rich landlords and caste lords, power mongers and political groups, police and administration and the so-called responsible persons turn anti-Dalit is well narrated in this investigation. The most recent phenomena is the drama of compromise and how it is a tool in suppressing the community at the grassroots could be viewed in detail. The complete violation of the law of the land including constitutional norms and other Acts and laws are researched and documented at length. The report argues the entire dynamics of caste as a mechanism of oppression in modern times.
An all women team went on to investigate the inhuman treatment and violence meted by Adivasi, Dal... more An all women team went on to investigate the inhuman treatment and violence meted by Adivasi, Dalit and Backward Class women in Kosamsara village of Mahasamund District of Chhattisgarh. The incident took place on 18 February, 2002.
Profits Over People is a fact-finding Investigation Report on Killing of Adivasi Youth near Jinda... more Profits Over People is a fact-finding Investigation Report on Killing of Adivasi Youth near Jindal industry in Raigarh in 2005. Though the incident has been connected with the immediate cause, the investigation also delves deep into the manner and character by which the industrial houses in Chhattisgarh, displace and dispossess people from the margin. Land grabbing, depletion of forests, despoliation of soil, contamination of water, denial of riparian rights, intoxication of air and other bodies are all part of this overall package. This investigation was initiated by Dalit Mukti Morcha, Chhattisgarh in colaboration with Dalit Study Circle & Social Institutue for Research Study and Action in May 2005, immediately after the incident. Though it is an old one, yet there still exists the scope to understand the mechanics of industrial groups and their terror tactics.
Theme
“MARGINALISATION, RESOURCES POLITICS AND JUSTICE CONCERNS”
DEADLINE DETAILS
Abstract Submi... more Theme “MARGINALISATION, RESOURCES POLITICS AND JUSTICE CONCERNS”
DEADLINE DETAILS Abstract Submission Deadline: July 15, 2016 Confirmation of Acceptance: July 20, 2016 Complete Manuscript: August 05, 2016 Review Report: August 15, 2016 Reworked Manuscript Submission: August 22, 2016 Processing Fee Submission: August 25, 2016 Publication: August 31, 2016
The Journal for People’s Studies (JPS) calls for abstracts for its next issue on the theme “Devel... more The Journal for People’s Studies (JPS) calls for abstracts for its next issue on the theme “Development and Social Justice” Development is the essence of any nation.
Before I start, let me place on record an apology to all our contributors, readers and members of... more Before I start, let me place on record an apology to all our contributors, readers and members of the editorial collective. This issue of JPS has been delayed for some time and as the Chief Editor of the Journal, I take the moral responsibility for this delay. The theme of this issue has been discussed much these days, however only in parts. The idea in this issue is to look at the three diverse aspects of society in a much composite manner. Both sociologically and anthropologically, there are strong interconnects between marginalisation, resource politics and justice concerns, which has been rarely addressed in academic arena. Without any critical or deep logic one could easily observe that the ones who are marginalised have lesser access to resources of all types and therefore dismissing all questions of justice in the overall distribution of wealth and resources. Marginalisation is a systematic process of practice to neglect, boycott, or refuse both individuals as well as groups from manifold aspects of society; power, education, trade, privilege, opportunities and resources. Interwoven with poverty, deprivation and social exclusion, marginalisation pushes the group or individual to the worst extents of periphery. While there is a consistent contest on the part of marginalised groups, the alienation and exploitation of oppressed and marginalised populations continue in more aggressive manner with newer manifestations in modern times where resources such as land, water, forests, minerals and human labour remain the key. Though in countries like India the reservation policy has been a step-up factor for the oppressed and marginalised groups, the question of reservation over natural resources have been kept out of the notion of positive discrimination and affirmative action. Despite the many fallacies of reservation, it has been a key factor in the upward mobility of groups that hitherto were not allowed to peep into the corridors of such institutions. This bulwarked impact has certainly pushed the individuals from socially depressed groups; however, it has not led to an upward mobility of the community. The state of marginalisation of the community has remained in the backyard and therefore social justice, for which the non-equitable distribution of resources has been the major reason. Under the growing power and effect of global capitalists over nations like India, the state has become an easy tool to facilitate the corporate agenda. It pushes the state as a feasible instrument to facilitate the corporate agenda by making favourable changes in the policies and laws, forcing the state to bring in laws limiting the space for democratic dissent. Pragmatically it opens up land, forests and other resource zones for the corporate sectors, primarily private companies. The entire state machinery assists the industrialisation through single window operations, tax
For the past almost a year, a lot of discussions and debates have been going around India on the ... more For the past almost a year, a lot of discussions and debates have been going around India on the question of ‘Freedom’ (Azadi). Parallel to this, another aspect of nationalism versus anti-nationalism and one’s loyalty towards nation has remained much in public circles. Freedom of speech, expression, religion, thought, governance, choice of ones’ likes and dislikes has been upheld by the Indian Constitution and by various international laws, covenants and conventions to which India is also a signatory as well as ratified by the Indian state. Why such a critical discussion is needed at this juncture?
Human society is under threat of an unprecedented crisis caused by climate change with the destru... more Human society is under threat of an unprecedented crisis caused by climate change with the destruction of biodiversity, environment, eco-system, as well as the extinction of species. The all- the pervasive impact of the changing climate is probably the greatest challenge that humanity faces in the twenty-first century. Though earth’s climate has always been variable over long time scales of thousands of years, the pace and magnitude of the changes witnessed in recent times seems to be unprecedented. The biggest contributor to the life-threatening changes in natural ecosystems and natural cycles is the huge amount of fossil carbon fuels (coal, petroleum and natural gas) that richer sections of the industrial human society have extracted and burned – especially in the last 150 years. Other activities of the industrial societies, such as expansion and intensification of ecologically destructive land uses in commercial interest, rapidly rising pollution levels, introduction of exotic species and over-harvesting of biological and non- renewable resources also contributed directly to the changing global climate. This has affected all life systems on the earth and, among other consequences, has dangerously accelerated the extinction rate of species.
Chhattisgarh is one of the most backward states in India which needs much focus on it’s rural population. With many changing socio-cultural and political dynamics a large number of groups are turning vision-less and direction-less, particularly the youths. With immense and rich resources in Chhattisgarh, there is a critical need to orient and disengage with the mainstream cultural pattern of power and destruction, while reclaiming the culture of protection of the environment, conservation of ecosystem, preservation of biodiversity and upholding human coexistence as it has been done for centuries unknown. Only indigenous communities and their cultures could do it.
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Papers by Goldy M George
गोल्डी एम. जॉर्ज लिखते है कि हाल में जारी इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट की रिपोर्ट को ध्यानपूर्वक पढ़ने और अन्य अध्ययनों से उसकी तुलना करने से यह साफ़ जाहिर होता है कि सरकार दरअसल इस तथ्य को छुपाने का प्रयास कर रही है कि समृद्ध जैव विविधता वाले वनों का क्षेत्रफल घटता जा रहा है। इन वनों का स्थान पर एक ही प्रजाति के वृक्षों वाले व्यावसायिक बागान ले रहे हैं
The recently released India State of Forest Report made the headlines for the finding that the forest cover has been increasing. The fine print of the report and other studies though suggest that the government is covering up the continuing loss of richly biodiverse forests with data on the increasing commercial monoculture plantations that leave Adivasis out of the picture, reports Goldy M. George
नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) 2019 का राष्ट्रव्यापी विरोध हो रहा है और हजारों नागरिक सड़कों पर उतर कर इस नए कानून के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे हैं. कई राज्य सरकारों ने इसकी खिलाफत करने हुए यह घोषणा कर दी है कि वे अपने राज्यों में इसे लागू नहीं करेंगे. और इनमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भाजपा के गठबंधन साथियों के नेतृत्व वाली सरकारें भी शामिल हैं.
The Citizenship (Amendment) Act (CAA) 2019 has sparked a nationwide protest with thousands taking to the streets across the country. Many state governments have already registered their opposition and have announced that they would not implement the Act in their respective territories. These include state governments led by allies of Prime Minister Narendra Modi’s Bharatiya Janata Party (BJP).
गोल्डी एम. जॉर्ज लिखते है कि हाल में जारी इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट की रिपोर्ट को ध्यानपूर्वक पढ़ने और अन्य अध्ययनों से उसकी तुलना करने से यह साफ़ जाहिर होता है कि सरकार दरअसल इस तथ्य को छुपाने का प्रयास कर रही है कि समृद्ध जैव विविधता वाले वनों का क्षेत्रफल घटता जा रहा है। इन वनों का स्थान पर एक ही प्रजाति के वृक्षों वाले व्यावसायिक बागान ले रहे हैं
The recently released India State of Forest Report made the headlines for the finding that the forest cover has been increasing. The fine print of the report and other studies though suggest that the government is covering up the continuing loss of richly biodiverse forests with data on the increasing commercial monoculture plantations that leave Adivasis out of the picture, reports Goldy M. George
नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) 2019 का राष्ट्रव्यापी विरोध हो रहा है और हजारों नागरिक सड़कों पर उतर कर इस नए कानून के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे हैं. कई राज्य सरकारों ने इसकी खिलाफत करने हुए यह घोषणा कर दी है कि वे अपने राज्यों में इसे लागू नहीं करेंगे. और इनमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भाजपा के गठबंधन साथियों के नेतृत्व वाली सरकारें भी शामिल हैं.
The Citizenship (Amendment) Act (CAA) 2019 has sparked a nationwide protest with thousands taking to the streets across the country. Many state governments have already registered their opposition and have announced that they would not implement the Act in their respective territories. These include state governments led by allies of Prime Minister Narendra Modi’s Bharatiya Janata Party (BJP).
“MARGINALISATION, RESOURCES POLITICS AND JUSTICE CONCERNS”
DEADLINE DETAILS
Abstract Submission Deadline: July 15, 2016
Confirmation of Acceptance: July 20, 2016
Complete Manuscript: August 05, 2016
Review Report: August 15, 2016
Reworked Manuscript Submission: August 22, 2016
Processing Fee Submission: August 25, 2016
Publication: August 31, 2016
Chhattisgarh is one of the most backward states in India which needs much focus on it’s rural population. With many changing socio-cultural and political dynamics a large number of groups are turning vision-less and direction-less, particularly the youths. With immense and rich resources in Chhattisgarh, there is a critical need to orient and disengage with the mainstream cultural pattern of power and destruction, while reclaiming the culture of protection of the environment, conservation of ecosystem, preservation of biodiversity and upholding human coexistence as it has been done for centuries unknown. Only indigenous communities and their cultures could do it.
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https://www.ketto.org/fundraiser/mitigate-climate-crisis-through-indigenous-action
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