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प्राणायाम
कपालभाती क्रिया
प्राणायाम
YOGDARSHAN SAMADHI PADA
SENTENCE 34
• PRACHCHHARDANA VIDHARANA ABHYAM VA PRANASYA ||34||
• प्रच्छर्दनविधारणाभयाां िा प्राणस्य ॥३४॥
• pracchardana-vidhāraṇa-ābhyāṁ vā prāṇasya ||34||
• The goal can be attained through breathing exercises involving
holding your breath before exhaling. ||34||
• pracchardana = exhale; discharge; eject
vidhāraṇa = hold in; hold back
ābhya = both, and
vā = or (The state of yoga can also be reached by...)
prāṇasya = breath or prana; vital energy
• प्राण को नासिका के द्िारा बाहर फें कने और फें ककर बाहर रोके रहना इन र्ो
प्रकारों िे चित्त की एकाग्रता होती है |
SAMADHI PADA
SENTENCE 34 VYASBHASYA
• कौष्ठयस्य…िांपार्येत ्||३४||
उर्रस्थिायु को नासिका के पुटों द्िारा विसिष्ट प्रयत्न के द्िारा बाहर
ननकालना प्रच्छर्दन है| रोकना विधारण है| इन र्ोनों के द्िारा या क्रकिी एक के
द्िारा मन की स्स्थनत का िम्पार्न करें |
चित्तिृनतयों के ननरोध हेतु अष्टाांग योग का मागद
• यमननयमािनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानिमाधयोऽष्टािङ्गानन॥२९॥
२९ िाधन पार्.
The Yoga Sutras of Patanjali-The Threads of Union Translation by BonGiovanni
2.29 The eight limbs of Union are self-restraint in actions, fixed observance, posture,
regulation of energy, mind-control in sense engagements, concentration, meditation, and
realization.
SADHANA PADA
SENTENCE 49
• TASMIN SATI SHVASA PRASHVASYOR GATI VICHCHHEDAH PRANAYAMAH ||49||
• तस्स्मन्िनत श्िािप्रश्िास्योगदनतविच्छेर्ः प्राणायामः ॥४९॥
• tasmin sati śvāsa-praśvāsyor-gati-vicchedaḥ prāṇāyāmaḥ ||49||
• Once that (tasmin) (Āsana or Posture) has been (perfected) (sati), Prāṇāyāma (prāṇāyāmaḥ), (which) is the
suspension(vicchedaḥ) of the flow (gati) of inhalation (śvāsa) and exhalation --praśvāsa--
(praśvāsayoḥ), (should be developed)||49||
• tasmin = after this; after asana
sati = being accomplished
śvāsa = inhaling
praśvāsyoḥ = (from praśvāsa) exhaling
gati = movement
vicchedaḥ = (nom from viccheda) interruption; braking; ceasing; mastering
prāṇa = life force; life energy
yāma = bind; regulate
āyāma = release; liberate
prāṇāyāmaḥ = (nom. from prāṇāyāma) harmony with life energy; yoga breathing exercises
• आिन की सिद्चध हो जाने पर श्िाि-प्रश्िाि की गनत को रोक र्ेना प्राणायाम कहलाता है |
SADHANA PADA
VYASBHASYA OF SENTENCE 49
• ित्यािनजये िाह्यस्य िायोरािमनां श्िािः कौष््यस्य िायोननदःिारणां
प्रश्िािस्तयोगदनतविच्छेर् उभयाभािः प्राणायामः॥४९॥
• Having conquered (jaye) the genuine (satya) Āsana or Posture (āsana),
suspension (vicchedaḥ) of the flow or movement (gati) of those
two (tayoḥ) (or) absence (abhāvaḥ) of them both (ubhaya), (that is,
of) inhalation (śvāsaḥ)[absorption (ācamanam) of external (vāhyasya) air --vāyu--
(vāyoḥ)] (and) exhalation (praśvāsaḥ) [expulsion (niḥsāraṇam) of
internal (kauṣṭhyasya)1 air --vāyu-- (vāyoḥ)] (is) Prāṇāyāma (prāṇāyāmaḥ)||49||
• आिन के सिद्ध होने पर िाह्य िायु को भीतर लेना श्िाि है | कोष्ठगत िायु को बहार
ननकालना प्रश्िाि है | उन र्ोनों द्िारा गनत का विच्छेर् अथादत र्ोनों प्रकार के िायु को
रोकना प्राणायाम कहलाता है |
• ५०. बाह्याभयन्तरस्तम्भिृवत्तः र्ेिकालिांख्यासभः पररदृष्टो र्ीर्दिूक्ष्मः ।
बाह्यिृनत, आभयांतरिृनत और स्तम्भिृनत प्राणायाम र्ेि, काल और िांख्या के
द्िारा जाना हुआ लम्बा और हल्का हो जाता है|
प्राणायाम के प्रकार
• हठयोग प्रदीपिका के अनुसार:
1. िहहत प्राणायाम
2. िुयदभेर्ी प्राणायाम
3. उज्जायी प्राणायाम
4. िीतली प्राणायाम
5. भस्स्िका प्राणायाम
6. भ्रामरी प्राणायाम
7. मूछाद प्राणायाम
8. के िली प्राणायाम
प्राणायाम का महत्ि
• िांिार में बाांधनेिाला, बुद्चध को र्ुष्कमद में लगाने िाला, अिुभ कमद
प्राणायाम के अभयाि िे र्ुबदल होता है और प्रनतक्षण क्षीण होता है |
प्राणायाम िे बढ़कर तप नहीां, प्राणायाम िे मलों की िुद्चध होती है
और ज्ञान की र्ीस्तत होती है | मन को धारणा आहर् में लगाने की
योग्यता हो जाती है अथादत योगाभयािी जहााँ कही भी मन को रोकना
िाहे,िहााँ रोकने में िमथद हो जाता है -िाधनपार् व्यािभास्य ५२-५३
“प्राणायाम” पुस्तक -स्िामी कु िलयानांर्,
कै िल्यधाम के कु छ अांि
• आसन: कु िािन के ऊपर हररणास्जन या मोटे ऊनी िस्ि तथा उिके ऊपर
प्रनतहर्न धोये हुए मोटे खार्ी के िस्ि िे एक अत्यांत िुखािह आिन बन
जाता है |
• खड़े-खड़े या चलते-चलते प्राणायाम: “गच्छता नतष्ठता कायदम्| उज्जायाख्यां
तु कु म्भकम्|” उज्जायी प्राणायाम का अभयाि खड़े-खड़े या िलते-िलते भी
क्रकया जा िकता है | – ह. प्र. २/५२
प्राणायाम का विज्ञान (हठप्रर्ीवपका में िर्णदत)
• चले वाते चलं चचत्तं ननश्चले ननश्चलं भवेत ्|
योगी स्थाणुत्वमाप्नोनत ततो वायु ननरोधयेत || ह. प्र. अ. २ श्लोक २
िायु के िलायमान होने पर चित्त भी िञ्िल होता है और िायु के ननश्िल हो जाने पर
चित्त भी स्स्थर हो जाता है, तब योगी स्स्थरता को प्रातत होता है| अतः प्राणायाम का
अभयाि करें |
• अिुद्ध नाड़ी िे कायद सिद्चध नहीां हो पाती है अतः प्राणायाम करें | ह. प्र. अ. २
श्लोक ४
• श्लोक ७-८-९: अनुलोम विलोम की िही तकनीक: तब तक रोके जब तक श्िाि
छोड़ने की िांिेर्ना न हो | श्िाि कभी िेग िे न छोड़े |
• श्लोक १०-११ : तीन माि िे कु छ अचधक िमय में नाड़ी िमूह ननमदल हो जाते है |
प्रातः, मध्याहन , िायां तथा अधदरात्रि इि प्रकार हर्न में िार बार प्राणायाम करें |
कु म्भकों की िांख्या धीरे-धीरे ८० तक ले जाए |
प्राणायाम का विज्ञान (हठप्रर्ीवपका में िर्णदत)
श्लोक १६: उचचत रीनत से ककया गया प्राणायाम सभी रोगों का नाश करता है |
अनुचचत रीनत से ककया गया प्राणायाम सभी रोगों की उत्िनत करता है |
श्लोक १९: प्राणायाम से शरीर ितला और कान्ततमान होता है
श्लोक २०: जठरान्नन प्रदीप्त होती है | आरोनय लाभ होता है |
श्लोक २१: स्थूलता और कफ न्जसे अचधक हो उतहें प्राणायाम से िहले ६ शोधन कियाएँ करनी चाहहये |
श्लोक ४५: िूरक के अतत में जालतधर बतध कु म्भक के अतत तथा रेचक के आरम्भ में उड्डियान बतध करना चाहहये |
श्लोक ५१: मुख को बंद कर दोनों नथुने से वायु को कु छ आवाज के साथ धीरे-धीरे इस प्रकार लेना चाहहए, न्जससे कं ठ से ले
कर हृदय प्रदेश तक इसके स्िशश का अनुभव हो |
श्लोक ५२: उज्जायी धातु-सम्बतधी दोषों को नष्ट करने वाला है | इसका अभ्यास उठते बैठते सदा सवशदा करना चाहहये |
र्ेरण्ड िांहहता – प्राणायाम प्रकरण
• श्लोक १: प्राणायाम का साधन करने मात्र से मनुष्य देवता के समान हो जाता है |
• श्लोक २: प्रथम स्थान और काल का चुनाव तथा ममताहार और नाड़ी शुद्चध करें |
इसके िश्चात प्राणायाम का अभ्यास करना चाहहए
• श्लोक ३-७: दूर देश में, अरण्य(वन) में और राजधानी में बैठकर योगाभ्यास नहीं
करना चाहहए, अतयथा मसद्चध में हानन हो सकती है, क्योंकक दूर देश में ककसी का
पवश्वास नहीं होता, अरण्य(वन) रक्षक रहहत होता है, और राजधानी में अचधक
जनसमूह रहने के कारण प्रकाश एवं कोलाहल रहता है | इसीमलए ये तीनों स्थान
इसके मलए वन्जशत है | सुतदर धमशशील देश में, जहाँ खाद्य िदाथश सुलभ हों और देश
उिद्रव रहहत भी हो, वहाँ कु टी बनाकर उसके चारों और प्राचीर ( चहारदीवारी ) बना
लें | वहाँ कु आँ या जलाशय हो | उस कु टी कक भूमम न बहुत ऊँ ची हो, न बहुत नीची,
गोबर से मलिी हुई कीट आहद से रहहत और एकांत स्थान में हो | वहाँ प्राणायाम का
अभ्यास करना चाहहए |
र्ेरण्ड िांहहता – प्राणायाम प्रकरण
• श्लोक ८-१५ का अंश: बसतत (चैत्र-वैशाख) और शरद् ऋतु (आन्श्वन-कानतशक) में
अभ्यास शुरू करना उचचत है |
• श्लोक १६-२२ का अंश: जो साधक योगारम्भ करने के काल में ममताहार नहीं करता,
उसके शरीर में अनेक रोग उत्ितन हो जाते है | यौचगक आहार लेना चाहहए | आधा
िेट भरना और आधा खाली रखना चाहहए | िेट के आधे भाग को अतन से, तीसरे
भाग को जल से भरना और चौथे भाग को वायु-संचालनाथश खाली रखना चाहहए |
• श्लोक २३-२६ का अंश: (१) कड़वा, अम्ल, लवण और नतक्त ये चार रस वाली
वस्तुओं का त्याग (२) प्याज, लहसुन, हींग आहद का त्याग (३) घूमना-कफरना तथा
अन्नन सेवन न करें एवं ब्रह्मचयश का िालन करें
• श्लोक ३२: कु श का मोटा आसन, मृग चमश या मसंह चमश अथवा कम्बल में से ककसी
प्रकार के आसन िर िूवश या उत्तर की और मुख करके नाड़ी शुद्चध होने िर प्राणायाम
का साधन करना चाहहए |
प्राणायाम विचध:
• िहहत प्राणायाम:
भ्रामरी प्राणायाम
भ्रामरी प्राणायाम करते समय भ्रमर अथाशत भंवरे जैसी गुंजन होती
है, इसी कारण इसे भ्रामरी प्राणायाम कहते हैं। भ्रामरी प्राणायाम से
जहां मन शांत होता है वहीं इसके ननयममत अभ्यास से और भी
बहुत से लाभ प्राप्त ककए जा सकते हैं।
पवचध- िुखािन, सिद्धािन या पद्मािन में बैठकर ििदप्रथम र्ोनों
होथों की अांगुसलयों में िे अनासमका अांगुली िे नाक के र्ोनों नछद्रों
को हल्का िा र्बाकर रखें। तजदनी को पाल पर, मध्यमा को आांखों
पर, िबिे छोटी अांगुली को होठ पर और अांगुठे िे र्ोनों कानों के
नछद्रों का बांर् कर र्ें।
क्रफर श्िाि को धीमी गनत िे गहरा खीांिकर अांर्र कु छ र्ेर रोककर
रखें और क्रफर उिे धीरे-धीरे आिाज करते हुए नाक के र्ोनों नछद्रों
िे ननकालें। श्िाि छोड़ते िक्त अनासमका अांगुली िे नाक के नछद्रों
को हल्का िा र्बाएां स्जििे कां पन उत्पन्न होगा।
जोर िे पूरक करते िमय भांिरी जैिी आिाज और क्रफर रेिक करते
िमय भी भांिरी जैिी आिाज उत्पन्न होना िाहहए। पूरक का अथद
श्िाि अांर्र लेना और रेिक का अथद श्िाि बाहर छोड़ना होता है।
सावधानी- भ्रामरी प्राणायाम को लेटकर नहीां क्रकया जाता। नाक या कानों में क्रकिी प्रकार का
िांिमण होने क्रक स्स्थनत में यह अभयाि ना करें।
इसके लाभ- इिे करने िे मन िाांत होकर तनाि र्ूर होता है। इि ध्िनन के कारण मन इि
ध्िनन के िाथ बांध िा जाता है, स्जििे मन की िांिलता िमातत होकर एकाग्रता बढ़ने
लगती है। यह मस्स्तष्क के अन्य रोगों में भी लाभर्ायक है।
इिके अलािा यहर् क्रकिी योग सिक्षक िे इिकी प्रक्रिया ठीक िे िीखकर करते हैं तो इििे
हृर्य और फे फड़े ििक्त बनते हैं। उच्ि-रक्तिाप िामान्य होता है। हकलाहट तथा तुतलाहट
भी इिके ननयसमत अभयाि िे र्ूर होती है। योगािायों अनुिार पक्रकद न्िन, लकिा, इत्याहर्
स्नायुओां िे िांबांधी िभी रोगों में भी लाभ पाया जा िकता है।
• मूछाश प्राणायाम: सिद्धािन में बैठ जाएां और गहरी श्िाि लें क्रफर
श्िाि को रोककर जालन्धर बांध लगाएां। क्रफर र्ोनों हाथों की तजदनी
और मध्यमा अांगुसलयों िे र्ोनों आांखों की पलकों को बांर् कर र्ें। र्ोनों
कननष्का अांगुली िे नीिे के होठ को ऊपर करके मुांह को बांर् कर लें।
इिके बार् इि स्स्थनत में तब तक रहें, जब तक श्िाि अांर्र रोकना
िम्भि हों। क्रफर धीरे-धीरे जालधर बांध खोलते हुए अांगुसलयों को
हटाकर धीरे-धीरे श्िाि बाहर छोड़ र्ें। इि क्रिया को 3 िे 5 बार करें।
• के वली प्राणायाम: स्िच्छ तथा उपयुक्त िातािरण में सिद्धािन में बैठ
जाए। अब र्ोनों नाक के नछद्र िे िायु को धीरे-धीरे अांर्र खीांिकर
फे फड़े िमेत पेट में पूणद रूप िे भर लें। इिके बार् क्षमता अनुिार
श्िाि को रोककर रखें। क्रफर र्ोनों नासिका नछद्रों िे धीरे-धीरे श्िाि
छोड़ें अथादत िायु को बाहर ननकालें। इि क्रिया को अपनी क्षमता
अनुिार क्रकतनी भी बार कर िकते हैं | दूसरी पवचध- रेिक और पूरक
क्रकए त्रबना ही िामान्य स्स्थनत में श्िाि लेते हुए स्जि अिस्था में हो,
उिी अिस्था में श्िाि को रोक र्ें। क्रफर िाहे श्िाि अांर्र जा रही हो
या बाहर ननकल रही हो। कु छ र्ेर तक श्िािों को रोककर रखना ही
के िली प्राणायाम है।

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Pranayama प्राणायाम

  • 3. YOGDARSHAN SAMADHI PADA SENTENCE 34 • PRACHCHHARDANA VIDHARANA ABHYAM VA PRANASYA ||34|| • प्रच्छर्दनविधारणाभयाां िा प्राणस्य ॥३४॥ • pracchardana-vidhāraṇa-ābhyāṁ vā prāṇasya ||34|| • The goal can be attained through breathing exercises involving holding your breath before exhaling. ||34|| • pracchardana = exhale; discharge; eject vidhāraṇa = hold in; hold back ābhya = both, and vā = or (The state of yoga can also be reached by...) prāṇasya = breath or prana; vital energy • प्राण को नासिका के द्िारा बाहर फें कने और फें ककर बाहर रोके रहना इन र्ो प्रकारों िे चित्त की एकाग्रता होती है |
  • 4. SAMADHI PADA SENTENCE 34 VYASBHASYA • कौष्ठयस्य…िांपार्येत ्||३४|| उर्रस्थिायु को नासिका के पुटों द्िारा विसिष्ट प्रयत्न के द्िारा बाहर ननकालना प्रच्छर्दन है| रोकना विधारण है| इन र्ोनों के द्िारा या क्रकिी एक के द्िारा मन की स्स्थनत का िम्पार्न करें |
  • 5. चित्तिृनतयों के ननरोध हेतु अष्टाांग योग का मागद • यमननयमािनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानिमाधयोऽष्टािङ्गानन॥२९॥ २९ िाधन पार्. The Yoga Sutras of Patanjali-The Threads of Union Translation by BonGiovanni 2.29 The eight limbs of Union are self-restraint in actions, fixed observance, posture, regulation of energy, mind-control in sense engagements, concentration, meditation, and realization.
  • 6. SADHANA PADA SENTENCE 49 • TASMIN SATI SHVASA PRASHVASYOR GATI VICHCHHEDAH PRANAYAMAH ||49|| • तस्स्मन्िनत श्िािप्रश्िास्योगदनतविच्छेर्ः प्राणायामः ॥४९॥ • tasmin sati śvāsa-praśvāsyor-gati-vicchedaḥ prāṇāyāmaḥ ||49|| • Once that (tasmin) (Āsana or Posture) has been (perfected) (sati), Prāṇāyāma (prāṇāyāmaḥ), (which) is the suspension(vicchedaḥ) of the flow (gati) of inhalation (śvāsa) and exhalation --praśvāsa-- (praśvāsayoḥ), (should be developed)||49|| • tasmin = after this; after asana sati = being accomplished śvāsa = inhaling praśvāsyoḥ = (from praśvāsa) exhaling gati = movement vicchedaḥ = (nom from viccheda) interruption; braking; ceasing; mastering prāṇa = life force; life energy yāma = bind; regulate āyāma = release; liberate prāṇāyāmaḥ = (nom. from prāṇāyāma) harmony with life energy; yoga breathing exercises • आिन की सिद्चध हो जाने पर श्िाि-प्रश्िाि की गनत को रोक र्ेना प्राणायाम कहलाता है |
  • 7. SADHANA PADA VYASBHASYA OF SENTENCE 49 • ित्यािनजये िाह्यस्य िायोरािमनां श्िािः कौष््यस्य िायोननदःिारणां प्रश्िािस्तयोगदनतविच्छेर् उभयाभािः प्राणायामः॥४९॥ • Having conquered (jaye) the genuine (satya) Āsana or Posture (āsana), suspension (vicchedaḥ) of the flow or movement (gati) of those two (tayoḥ) (or) absence (abhāvaḥ) of them both (ubhaya), (that is, of) inhalation (śvāsaḥ)[absorption (ācamanam) of external (vāhyasya) air --vāyu-- (vāyoḥ)] (and) exhalation (praśvāsaḥ) [expulsion (niḥsāraṇam) of internal (kauṣṭhyasya)1 air --vāyu-- (vāyoḥ)] (is) Prāṇāyāma (prāṇāyāmaḥ)||49|| • आिन के सिद्ध होने पर िाह्य िायु को भीतर लेना श्िाि है | कोष्ठगत िायु को बहार ननकालना प्रश्िाि है | उन र्ोनों द्िारा गनत का विच्छेर् अथादत र्ोनों प्रकार के िायु को रोकना प्राणायाम कहलाता है | • ५०. बाह्याभयन्तरस्तम्भिृवत्तः र्ेिकालिांख्यासभः पररदृष्टो र्ीर्दिूक्ष्मः । बाह्यिृनत, आभयांतरिृनत और स्तम्भिृनत प्राणायाम र्ेि, काल और िांख्या के द्िारा जाना हुआ लम्बा और हल्का हो जाता है|
  • 8. प्राणायाम के प्रकार • हठयोग प्रदीपिका के अनुसार: 1. िहहत प्राणायाम 2. िुयदभेर्ी प्राणायाम 3. उज्जायी प्राणायाम 4. िीतली प्राणायाम 5. भस्स्िका प्राणायाम 6. भ्रामरी प्राणायाम 7. मूछाद प्राणायाम 8. के िली प्राणायाम
  • 9. प्राणायाम का महत्ि • िांिार में बाांधनेिाला, बुद्चध को र्ुष्कमद में लगाने िाला, अिुभ कमद प्राणायाम के अभयाि िे र्ुबदल होता है और प्रनतक्षण क्षीण होता है | प्राणायाम िे बढ़कर तप नहीां, प्राणायाम िे मलों की िुद्चध होती है और ज्ञान की र्ीस्तत होती है | मन को धारणा आहर् में लगाने की योग्यता हो जाती है अथादत योगाभयािी जहााँ कही भी मन को रोकना िाहे,िहााँ रोकने में िमथद हो जाता है -िाधनपार् व्यािभास्य ५२-५३
  • 10. “प्राणायाम” पुस्तक -स्िामी कु िलयानांर्, कै िल्यधाम के कु छ अांि • आसन: कु िािन के ऊपर हररणास्जन या मोटे ऊनी िस्ि तथा उिके ऊपर प्रनतहर्न धोये हुए मोटे खार्ी के िस्ि िे एक अत्यांत िुखािह आिन बन जाता है | • खड़े-खड़े या चलते-चलते प्राणायाम: “गच्छता नतष्ठता कायदम्| उज्जायाख्यां तु कु म्भकम्|” उज्जायी प्राणायाम का अभयाि खड़े-खड़े या िलते-िलते भी क्रकया जा िकता है | – ह. प्र. २/५२
  • 11. प्राणायाम का विज्ञान (हठप्रर्ीवपका में िर्णदत) • चले वाते चलं चचत्तं ननश्चले ननश्चलं भवेत ्| योगी स्थाणुत्वमाप्नोनत ततो वायु ननरोधयेत || ह. प्र. अ. २ श्लोक २ िायु के िलायमान होने पर चित्त भी िञ्िल होता है और िायु के ननश्िल हो जाने पर चित्त भी स्स्थर हो जाता है, तब योगी स्स्थरता को प्रातत होता है| अतः प्राणायाम का अभयाि करें | • अिुद्ध नाड़ी िे कायद सिद्चध नहीां हो पाती है अतः प्राणायाम करें | ह. प्र. अ. २ श्लोक ४ • श्लोक ७-८-९: अनुलोम विलोम की िही तकनीक: तब तक रोके जब तक श्िाि छोड़ने की िांिेर्ना न हो | श्िाि कभी िेग िे न छोड़े | • श्लोक १०-११ : तीन माि िे कु छ अचधक िमय में नाड़ी िमूह ननमदल हो जाते है | प्रातः, मध्याहन , िायां तथा अधदरात्रि इि प्रकार हर्न में िार बार प्राणायाम करें | कु म्भकों की िांख्या धीरे-धीरे ८० तक ले जाए |
  • 12. प्राणायाम का विज्ञान (हठप्रर्ीवपका में िर्णदत) श्लोक १६: उचचत रीनत से ककया गया प्राणायाम सभी रोगों का नाश करता है | अनुचचत रीनत से ककया गया प्राणायाम सभी रोगों की उत्िनत करता है | श्लोक १९: प्राणायाम से शरीर ितला और कान्ततमान होता है श्लोक २०: जठरान्नन प्रदीप्त होती है | आरोनय लाभ होता है | श्लोक २१: स्थूलता और कफ न्जसे अचधक हो उतहें प्राणायाम से िहले ६ शोधन कियाएँ करनी चाहहये | श्लोक ४५: िूरक के अतत में जालतधर बतध कु म्भक के अतत तथा रेचक के आरम्भ में उड्डियान बतध करना चाहहये | श्लोक ५१: मुख को बंद कर दोनों नथुने से वायु को कु छ आवाज के साथ धीरे-धीरे इस प्रकार लेना चाहहए, न्जससे कं ठ से ले कर हृदय प्रदेश तक इसके स्िशश का अनुभव हो | श्लोक ५२: उज्जायी धातु-सम्बतधी दोषों को नष्ट करने वाला है | इसका अभ्यास उठते बैठते सदा सवशदा करना चाहहये |
  • 13. र्ेरण्ड िांहहता – प्राणायाम प्रकरण • श्लोक १: प्राणायाम का साधन करने मात्र से मनुष्य देवता के समान हो जाता है | • श्लोक २: प्रथम स्थान और काल का चुनाव तथा ममताहार और नाड़ी शुद्चध करें | इसके िश्चात प्राणायाम का अभ्यास करना चाहहए • श्लोक ३-७: दूर देश में, अरण्य(वन) में और राजधानी में बैठकर योगाभ्यास नहीं करना चाहहए, अतयथा मसद्चध में हानन हो सकती है, क्योंकक दूर देश में ककसी का पवश्वास नहीं होता, अरण्य(वन) रक्षक रहहत होता है, और राजधानी में अचधक जनसमूह रहने के कारण प्रकाश एवं कोलाहल रहता है | इसीमलए ये तीनों स्थान इसके मलए वन्जशत है | सुतदर धमशशील देश में, जहाँ खाद्य िदाथश सुलभ हों और देश उिद्रव रहहत भी हो, वहाँ कु टी बनाकर उसके चारों और प्राचीर ( चहारदीवारी ) बना लें | वहाँ कु आँ या जलाशय हो | उस कु टी कक भूमम न बहुत ऊँ ची हो, न बहुत नीची, गोबर से मलिी हुई कीट आहद से रहहत और एकांत स्थान में हो | वहाँ प्राणायाम का अभ्यास करना चाहहए |
  • 14. र्ेरण्ड िांहहता – प्राणायाम प्रकरण • श्लोक ८-१५ का अंश: बसतत (चैत्र-वैशाख) और शरद् ऋतु (आन्श्वन-कानतशक) में अभ्यास शुरू करना उचचत है | • श्लोक १६-२२ का अंश: जो साधक योगारम्भ करने के काल में ममताहार नहीं करता, उसके शरीर में अनेक रोग उत्ितन हो जाते है | यौचगक आहार लेना चाहहए | आधा िेट भरना और आधा खाली रखना चाहहए | िेट के आधे भाग को अतन से, तीसरे भाग को जल से भरना और चौथे भाग को वायु-संचालनाथश खाली रखना चाहहए | • श्लोक २३-२६ का अंश: (१) कड़वा, अम्ल, लवण और नतक्त ये चार रस वाली वस्तुओं का त्याग (२) प्याज, लहसुन, हींग आहद का त्याग (३) घूमना-कफरना तथा अन्नन सेवन न करें एवं ब्रह्मचयश का िालन करें • श्लोक ३२: कु श का मोटा आसन, मृग चमश या मसंह चमश अथवा कम्बल में से ककसी प्रकार के आसन िर िूवश या उत्तर की और मुख करके नाड़ी शुद्चध होने िर प्राणायाम का साधन करना चाहहए |
  • 16. भ्रामरी प्राणायाम भ्रामरी प्राणायाम करते समय भ्रमर अथाशत भंवरे जैसी गुंजन होती है, इसी कारण इसे भ्रामरी प्राणायाम कहते हैं। भ्रामरी प्राणायाम से जहां मन शांत होता है वहीं इसके ननयममत अभ्यास से और भी बहुत से लाभ प्राप्त ककए जा सकते हैं। पवचध- िुखािन, सिद्धािन या पद्मािन में बैठकर ििदप्रथम र्ोनों होथों की अांगुसलयों में िे अनासमका अांगुली िे नाक के र्ोनों नछद्रों को हल्का िा र्बाकर रखें। तजदनी को पाल पर, मध्यमा को आांखों पर, िबिे छोटी अांगुली को होठ पर और अांगुठे िे र्ोनों कानों के नछद्रों का बांर् कर र्ें। क्रफर श्िाि को धीमी गनत िे गहरा खीांिकर अांर्र कु छ र्ेर रोककर रखें और क्रफर उिे धीरे-धीरे आिाज करते हुए नाक के र्ोनों नछद्रों िे ननकालें। श्िाि छोड़ते िक्त अनासमका अांगुली िे नाक के नछद्रों को हल्का िा र्बाएां स्जििे कां पन उत्पन्न होगा। जोर िे पूरक करते िमय भांिरी जैिी आिाज और क्रफर रेिक करते िमय भी भांिरी जैिी आिाज उत्पन्न होना िाहहए। पूरक का अथद श्िाि अांर्र लेना और रेिक का अथद श्िाि बाहर छोड़ना होता है। सावधानी- भ्रामरी प्राणायाम को लेटकर नहीां क्रकया जाता। नाक या कानों में क्रकिी प्रकार का िांिमण होने क्रक स्स्थनत में यह अभयाि ना करें। इसके लाभ- इिे करने िे मन िाांत होकर तनाि र्ूर होता है। इि ध्िनन के कारण मन इि ध्िनन के िाथ बांध िा जाता है, स्जििे मन की िांिलता िमातत होकर एकाग्रता बढ़ने लगती है। यह मस्स्तष्क के अन्य रोगों में भी लाभर्ायक है। इिके अलािा यहर् क्रकिी योग सिक्षक िे इिकी प्रक्रिया ठीक िे िीखकर करते हैं तो इििे हृर्य और फे फड़े ििक्त बनते हैं। उच्ि-रक्तिाप िामान्य होता है। हकलाहट तथा तुतलाहट भी इिके ननयसमत अभयाि िे र्ूर होती है। योगािायों अनुिार पक्रकद न्िन, लकिा, इत्याहर् स्नायुओां िे िांबांधी िभी रोगों में भी लाभ पाया जा िकता है।
  • 17. • मूछाश प्राणायाम: सिद्धािन में बैठ जाएां और गहरी श्िाि लें क्रफर श्िाि को रोककर जालन्धर बांध लगाएां। क्रफर र्ोनों हाथों की तजदनी और मध्यमा अांगुसलयों िे र्ोनों आांखों की पलकों को बांर् कर र्ें। र्ोनों कननष्का अांगुली िे नीिे के होठ को ऊपर करके मुांह को बांर् कर लें। इिके बार् इि स्स्थनत में तब तक रहें, जब तक श्िाि अांर्र रोकना िम्भि हों। क्रफर धीरे-धीरे जालधर बांध खोलते हुए अांगुसलयों को हटाकर धीरे-धीरे श्िाि बाहर छोड़ र्ें। इि क्रिया को 3 िे 5 बार करें।
  • 18. • के वली प्राणायाम: स्िच्छ तथा उपयुक्त िातािरण में सिद्धािन में बैठ जाए। अब र्ोनों नाक के नछद्र िे िायु को धीरे-धीरे अांर्र खीांिकर फे फड़े िमेत पेट में पूणद रूप िे भर लें। इिके बार् क्षमता अनुिार श्िाि को रोककर रखें। क्रफर र्ोनों नासिका नछद्रों िे धीरे-धीरे श्िाि छोड़ें अथादत िायु को बाहर ननकालें। इि क्रिया को अपनी क्षमता अनुिार क्रकतनी भी बार कर िकते हैं | दूसरी पवचध- रेिक और पूरक क्रकए त्रबना ही िामान्य स्स्थनत में श्िाि लेते हुए स्जि अिस्था में हो, उिी अिस्था में श्िाि को रोक र्ें। क्रफर िाहे श्िाि अांर्र जा रही हो या बाहर ननकल रही हो। कु छ र्ेर तक श्िािों को रोककर रखना ही के िली प्राणायाम है।