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पुनर्जन्म
पुनर्जन्म पर विश्िास क्यों
• बृहदारण्यक उपननषद के अनुसार मनुष्य का र्न्म उसकी िासना के अनुसार
होता है|
• ईश्िर भेदभाि नह ीं रखता है
• र्ो एक र्ीिन में मोक्ष न प्राप्त कर सके उनके लिए आगे प्रगनत करने के
लिए पुनर्जन्म एक सुविधा है
• योग विभूनतपाद पद १८ के अनुसार सींयम द्िारा सींस्कारों का साक्षात् कर िे
ने से पूिज र्न्मो का ज्ञान हो र्ाता है
शास्रों में पुनर्जन्म एिीं मृत्यु के बाद के
र्ीिन का उल्िेख
• “ प्रेत प्रकषेण गच्छत| सेनानायक इन्ररुप रुर:|” अर्ाजत इस िोक से गया हुआ प्राणी प्रेत
कहिाता है| इस प्राणी का ननयमकताज यम है और यम का शासनकताज रुर है|
- यर्ुिेद १७/४६ के अनुसार
• “देहान्तरार्ज देहस्य सींत्यागो मरणीं स्मृतम्|”- योगिालसष्ठ
दुसरे नये शर र की प्राप्प्त के लिए र्ो पहिे शर र का त्याग ककया र्ाता है िह मरण
है|
• बहूनन में व्यतीतानन र्न्मानन ति चार्ुजन |
तान्यहीं िेद सिाजणण न त्िीं िेत्र् परींतप ||
हे अर्ुजन मेरे और तुम्हारे बहुत से र्न्म बीत चुके हैं| उन सबको मैं र्ानता हूीं, तुम नह ीं
र्ानते हो| भगिद्गीता ४/५
शास्रों में पुनर्जन्म एिीं मृत्यु के बाद के
र्ीिन का उल्िेख
“न साम्पराय: प्रतिभाति बालं, प्रमाध्यन्िं वित्तमोहेन मूढम्|
अयं लोको नास्ति पर इति मातन पुनः पुनिवशमापध्यिे मे”
(धन, कामना और साींसाररक िासनाओीं से) मूढ़ मनुष्यों के हृदय में अबोध
लशशुओीं के समान ह पारिौककक सत्ता की अनुभूनत नह ीं होती| ऐसे िोग र्ो
कहते है कक (पृथ्िी को छोड़कर) परिोक नाम की कोई िस्तु नह ीं है, बार-बार
मृत्युिोक में आते हैं|
अग्ने नय सुपथा राये अतमान ्, विश्िातन देि ियुनातन विद्िान ्;
युयोध्यतम्जहुराणमेनो, भूतयष्ां िे नम उस्तिमं विधेम | - ईश उपतनषद
१/१/१८
“हे ईश्िर ! हमें विश्ि के अक्षय आिोकमय उद्गम स्र्ि पर िे र्ाओ र्ो
अविनाशी है, और र्हाीं अमरता का साम्राज्य है और मुझे अमर बनाओ |”
र्ीिात्मा और तीन एषणायें:
आयुिेद का दशजन
• सूर स्र्ान अध्याय १ श्िोक ५५-५६ के अनुसार रोगों के आश्रय शर र और
मन है आत्मा नह ीं है क्योंकक आत्मा ननविजकार है|
• सूर स्र्ान अध्याय ११ श्िोक ३ के अनुसार अपना कल्याण चाहने िािे को
तीन एषणायें (इच्छाएँ) होनी चाहहए (१) प्राण-एषणा (२) धन-एषणा (3)
परिोक-एषणा
• (१) प्राण-एषणा- स्िस्र् िृत का पािन करने से प्राण-एषणा पूर होती है|
• (२) धन-एषणा- िम्बी आयु हो पर भोग की कोई सामग्री ना हो िह पापों
का सबसे बड़ा फि है|
• (3) परिोक-एषणा- अधमज से फै ि हुई मनत को छोड़कर सज्र्न पुरुषों के
बुद्धध स्िरुप द पक से उधचत मागज को ठीक-ठीक रूप में प्राप्त करें|
प्रत्यक्ष प्रमाण ह सब कु छ नह ीं है:
आयुिेद का दशजन
• सूर स्र्ान अध्याय ११ श्िोक ६ के अनुसार प्रत्यक्ष ना होने से
पुनर्जन्म के विषय में शींका होती है|
• प्रत्यक्ष प्रमाण ह सब कु छ नह ीं है

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  • 2. पुनर्जन्म पर विश्िास क्यों • बृहदारण्यक उपननषद के अनुसार मनुष्य का र्न्म उसकी िासना के अनुसार होता है| • ईश्िर भेदभाि नह ीं रखता है • र्ो एक र्ीिन में मोक्ष न प्राप्त कर सके उनके लिए आगे प्रगनत करने के लिए पुनर्जन्म एक सुविधा है • योग विभूनतपाद पद १८ के अनुसार सींयम द्िारा सींस्कारों का साक्षात् कर िे ने से पूिज र्न्मो का ज्ञान हो र्ाता है
  • 3. शास्रों में पुनर्जन्म एिीं मृत्यु के बाद के र्ीिन का उल्िेख • “ प्रेत प्रकषेण गच्छत| सेनानायक इन्ररुप रुर:|” अर्ाजत इस िोक से गया हुआ प्राणी प्रेत कहिाता है| इस प्राणी का ननयमकताज यम है और यम का शासनकताज रुर है| - यर्ुिेद १७/४६ के अनुसार • “देहान्तरार्ज देहस्य सींत्यागो मरणीं स्मृतम्|”- योगिालसष्ठ दुसरे नये शर र की प्राप्प्त के लिए र्ो पहिे शर र का त्याग ककया र्ाता है िह मरण है| • बहूनन में व्यतीतानन र्न्मानन ति चार्ुजन | तान्यहीं िेद सिाजणण न त्िीं िेत्र् परींतप || हे अर्ुजन मेरे और तुम्हारे बहुत से र्न्म बीत चुके हैं| उन सबको मैं र्ानता हूीं, तुम नह ीं र्ानते हो| भगिद्गीता ४/५
  • 4. शास्रों में पुनर्जन्म एिीं मृत्यु के बाद के र्ीिन का उल्िेख “न साम्पराय: प्रतिभाति बालं, प्रमाध्यन्िं वित्तमोहेन मूढम्| अयं लोको नास्ति पर इति मातन पुनः पुनिवशमापध्यिे मे” (धन, कामना और साींसाररक िासनाओीं से) मूढ़ मनुष्यों के हृदय में अबोध लशशुओीं के समान ह पारिौककक सत्ता की अनुभूनत नह ीं होती| ऐसे िोग र्ो कहते है कक (पृथ्िी को छोड़कर) परिोक नाम की कोई िस्तु नह ीं है, बार-बार मृत्युिोक में आते हैं| अग्ने नय सुपथा राये अतमान ्, विश्िातन देि ियुनातन विद्िान ्; युयोध्यतम्जहुराणमेनो, भूतयष्ां िे नम उस्तिमं विधेम | - ईश उपतनषद १/१/१८ “हे ईश्िर ! हमें विश्ि के अक्षय आिोकमय उद्गम स्र्ि पर िे र्ाओ र्ो अविनाशी है, और र्हाीं अमरता का साम्राज्य है और मुझे अमर बनाओ |”
  • 5. र्ीिात्मा और तीन एषणायें: आयुिेद का दशजन • सूर स्र्ान अध्याय १ श्िोक ५५-५६ के अनुसार रोगों के आश्रय शर र और मन है आत्मा नह ीं है क्योंकक आत्मा ननविजकार है| • सूर स्र्ान अध्याय ११ श्िोक ३ के अनुसार अपना कल्याण चाहने िािे को तीन एषणायें (इच्छाएँ) होनी चाहहए (१) प्राण-एषणा (२) धन-एषणा (3) परिोक-एषणा • (१) प्राण-एषणा- स्िस्र् िृत का पािन करने से प्राण-एषणा पूर होती है| • (२) धन-एषणा- िम्बी आयु हो पर भोग की कोई सामग्री ना हो िह पापों का सबसे बड़ा फि है| • (3) परिोक-एषणा- अधमज से फै ि हुई मनत को छोड़कर सज्र्न पुरुषों के बुद्धध स्िरुप द पक से उधचत मागज को ठीक-ठीक रूप में प्राप्त करें|
  • 6. प्रत्यक्ष प्रमाण ह सब कु छ नह ीं है: आयुिेद का दशजन • सूर स्र्ान अध्याय ११ श्िोक ६ के अनुसार प्रत्यक्ष ना होने से पुनर्जन्म के विषय में शींका होती है| • प्रत्यक्ष प्रमाण ह सब कु छ नह ीं है