प्रोबोसीडिया
हाथी गण या प्रोबोसीडिया (Proboscidea), शुंडधारी जंतुओं का एक गण है। भारत तथा अफ्रीका में पाए जानेवाले हाथी 'स्तनपायी' वर्ग के 'शुंडी' गण के जंतुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये जंतु अपने शुंड एवं विशाल शरीर के कारण अन्य जीवित स्तनपायी जंतुओं से भिन्न होते हैं। परंतु इन्हीं जंतुओं के सदृश आकारवाले कई विलुप्त जंतुओं के जीवाश्म पूर्व काल से ज्ञात हैं। उन प्राचीन जंतुओं की तुलना अन्य स्तनपायी जंतुओं से की जा सकती है।
हाथी
[संपादित करें]हाथी बहुत ही प्राचीन जंतु है। इसकी विशेषताएँ अधिकांशत: इसके दीर्घ आकार से संबंधित हैं। अफ्रीका महादेश के हाथियों की ऊँचाई ११ से १३ फुट तक होती है। अभिलिखित, अधिकतम भार साढ़े छह टन है। अत: अत्यधिक भार एवं संरचना की विशालता में ये सभी स्थलचर जीवित जंतुओं में उत्कृष्ट हैं।
विशाल शरीर का भार वहन करने के लिए इनकी खंभे सदृश भुजाएँ अधिक सुदृढ़ एवं स्थूल होती हैं, जिनके कंकाल की बनावट गठी हुई होती है। पैरों के तलवे का अधिकांश (अंगुलियों के नीचे और पीछे) गद्दीदार होता है, जो इनके शरीर का अधिकांश भार झेलता है।
इनकी ग्रीवा छोटी होती है, विशाल मस्तक के दोनों पार्श्व में दो बृहद् कर्ण पल्लव (pinna) तथा नीचे की ओर एक लंबा शुंड होता है। शुंड नम्य तथा मांसल नली के सदृश एक परिग्राही (prehensile) अंग है, जो किसी भी दिशा में घूम सकता है। इसके अग्र छोर पर अंगुलियों के समान एक या दो रचनाएँ होती हैं, जो पैसे जैसी क्षुद्र वस्तु को भी सुगमता से उठा सकती हैं। शुंड मुख (face) के संपूर्ण अग्रभाग, विशेषत: नासा एवं ओष्ठ का ही परिवर्तित रूप हैं। दोनों नासा छिद्र शुंड के अग्र छोर पर होते हैं, जिनका संबंध शुंड के आधार पर स्थित घ्राणकोष्ठ (olfactory chamber) के दो लंबी नलियों के द्वारा होता है।
अस्थियों के स्थूल एवं छिद्रित होने के कारण हाथियों की करोटि (skull) अपेक्षया बहुत छोटे आकार की तथा हल्की होती है। करोटि की संरचना एक उत्तोलक (lever) के समान होती है, फलस्वरूप मस्तक का भार वहन करने के लिए लंबी ग्रीवा की आवश्यकता नहीं होती।
हाथियों के चर्वण-दंत, डेन्टीन (dentine) की पतली पट्टियों से बने होते हैं, जो दंतवल्कल (enamel) से घिरे तथा सीमेंट (cement) से जुड़े होते हैं। ये पट्टियाँ पीसनेवाले धरातल के ऊपर उभरी होती हैं। ये दंत तथा इनकी पट्टियाँ क्रमश: प्रयोग में आती हैं, फलस्वरूप पूर्ण दंतपट्टियाँ एक साथ नहीं घिस पातीं। दाँतों की अधिकतम संख्या २८ होती है, परंतु यह इस प्रकार काम में आते तथा घिसते हैं कि एक समय में केवल ८ चर्वण दंत ही प्रयोग में आ पाते हैं। इसके अतिरिक्त उत्तर वृंतक दंत (upper incisor teeth) या गज दंत (tusk) दो छोटे दुग्ध दंत (milk tusks) के टूटने के बाद ही प्रगट होते हैं। दंतवल्कल के द्वारा बने अग्र छोर के अतिरिक्त गज दंत के शेष भाग डेंटीन के बने होते हैं। इनकी वृद्धि आजीवन होती रहती है। वैज्ञानिकों के अभिलेखों में अफ्रीका के हाथियों के गज दंत की अधिकतम लंबाई १० फुट ३/४ इंच तथा भार २३९ पाउंड तक मिलता हैं।
हाथियों के मेरुदंड (vertebral column) के ग्रीवा भाग में छह छोटी छोटी कशेरुकाएँ (vertebrae) तथा पृष्ठ भाग में १९ से २१ कशेरुकाएँ तक होती हैं। पृष्ठ भाग की अग्र कशेरुकाओं के तंत्रिकीय कंटक (neural spines) अधिक लंबे होते हैं। कटि क्षेत्र (lumber region) में तीन या चार कशेरुकाएँ होती हैं, तथा सेक्रम (sacrum) चार कशेरुकाओं के एक साथ जुड़ जाने से बना होता है। पुच्छीय (caudal) कशेरुकाओं की संख्या तीस के निकट होती है। पसली की अस्थियाँ (ribs) अधिक लंबी होती हैं, जिनसे विशाल वक्ष (thorax) घिरा रहता है। अंस मेखला (shoulder girdle) एक त्रिकोणात्मक स्कंधास्थि का बना होता है, जो वक्ष के पार्श्व में उदग्र रूप से लगा रहता है। प्रगंडिका (humerus), अग्र बाहु (fore arm) से अधिक लंबी होती है, फलस्वरूप हाथियों की कुहनी (elbow) लंबाई में अश्वों की कलाई (wrist) के कुछ ही ऊपर रहती है। बहिःप्रकोष्ठिका (radius) तथा अंतःप्रकोष्ठिका (ulna) की रचना विचित्र होती है। उनकी वे सतहें जो मणिबंधिकाओं (carpels) से जुड़ती हैं, लगभग बराबर होती है, परंतु बहिःप्रकोष्ठिका का अग्र भाग अपेक्षया छोटा एवं अंतःप्रकोष्ठिका के सम्मुख होता है। ये दोनों अस्थियाँ एक दूसरे को काटती हुई पीछे की ओर आती हैं। मणिबंधिका की रचना भी असमान होती है, क्योंकि मणि बंधिकास्थियाँ जिनकी दो पंक्तियाँ होती हैं, एक सीध में न होकर एक दूसरे के अंदर होती हैं। अंगुलियों तथा पादांगुलियों के अग्र छोर पर हाथी चलता है परंतु हथेली और तलवे के मांसल एव गद्देदार होने से विशाल शरीर का संपूर्ण भार अंगुलियों के छोर पर नहीं आ पाता। श्रोणि प्रदेश (peivis) असाधारण रूप से चौड़ा होता है। श्रोणि, (Ilia) चौड़ी होती है, जिसके पश्चभाग से मांस पेशियाँ पैरों के साथ जुड़ी होती है तथा पार्श्व भाग से देहभित्ति की मांसपेशियाँ जुड़ी रहती हैं। अग्रबाहु के सदृश पैरों के ऊपरी भाग की लंबाई अधिक होती है। गुल्फ (tarsus) में अनुगुल्फिका (astragalus) भार वहन करने के लिए चौड़ी होती है।
हाथियों के अन्य अंगों की आंतरिक रचना सामान्य होती है। नासा एवं ओष्ठ के द्वारा बने हुए शुंड के अतिरिक्त इनके अन्य अंगों में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होता। फुप्फुसावरणी गुहा (pleural cavity) की अनुपस्थिति इन जंतुओं की मुख्य विशेषता है। इनके उदरीय वृषण (abdominal testes), द्विशृंगी गर्भाशय (bicornuate uterus) तथा प्रादेशिक एवं परानिकामय अपरा (jonary and desiduate placenta) विशेष उल्लेखनीय हैं, क्योंकि साइरेनिया (sirenia) गण के जंतुओं में भी ये विशेषताएँ मिलती हैं। अनुमानत: साइरेनिया गण की उत्पत्ति इन्हीं प्राचीन शुंडी जीवों से हुई हैं।
इनके मस्तिष्क की रचना प्राचीनकालीन है। अग्र मस्तिष्क, पश्च मस्तिष्क को पूर्ण रूपेण नहीं ढँक पाता है। आकार की विशालता तथा ऊपरी भाग के आवर्त इसकी मुख्य विशेषताएँ हैं। इनकी स्मरण शक्ति अद्भुत होती है। ये अपने शत्रु, मित्र, तथा अपने शरीर के क्षतों की शीघ्र नहीं भूलते। प्रिय फलों के परिपक्व होने का समय इन्हें ज्ञात रहता है। प्रशिक्षण के पश्चात् ये कठिन श्रम भी करते हैं। मुख्यत: नर अधिक लजीले स्वभाव के होते हैं। इनकी दृष्टि क्षीण परंतु घ्राण एवं श्रवण शक्ति तीव्र होती है।
प्राचीन हाथी
[संपादित करें]अर्वाचीन हाथी शारीरिक रचना में प्राचीन हाथियों से सर्वथा भिन्न हैं परंतु इनका आकार क्रमश: कालांतर में विकसित हुआ है। इनके सबसे प्राचीन पूर्वज मोरीथीरियम (आद्य शुंडी प्रजाति, Moeritherium) नामक जंतु के अवशेष जीवाश्म के रूप में मिस्र देश में पाए गए हैं। ये उत्तर प्रादिनूतन (upper Eocene) के जीव आकार में छोटे तथा अनुमानत: शुंडरहित थे। इनके संमुख के सभी दंत वर्तमान थे, जिनमें ऊपर और नीचे के एक एक जोड़े अधिक लंबे थे। सभी चर्वण दंत अति साधारण आकार के थे। इस प्रकार बाह्य रूप से सर्वथा भिन्न होने पर भी कई दृष्टि से ये जीव वर्तमान काल के हाथियों के आदि पूर्वज माने गए हैं।
मोरीथीरियम के अधिक विकसित रूप मैस्टोडॉन्स (Mastodons) या शंकुदंत प्रजाति के जीवाश्म भी मिस्र देश में पाए गए हैं। इनका वृद्धिकाल अल्पनूतन युग (Oligocene) से अत्यंतनूतन युग (Pleistocene) के बीच का समय माना गया है। सभी प्राचीन मैस्टोडॉन्स के दोनों जबड़ों में गजदंत वर्तमान थे। ये गजदंत सर्वप्रथम वक्र नहीं थे। जबड़े अधिक बड़े तथा अस्थिमय थे, तथा नासा नली लंबी थी, परंतु केवल अग्र भाग ही संभवत: नम्य था।
इस प्रकार धीरे धीरे जबड़े तथा नीचे के गजदंत छोटे आकार के तथा ऊपर के गजदंत अधिक वक्र तथा शुंड अधिक नम्य होते गए। 'मैस्टोडॉन्स' के अग्राकृति तथा अर्वाचीन हाथियों के मस्तक क्रमश: इसी प्रकार परिवर्तित एवं विकसित हुए। प्रारंभिक 'मेस्टोडॉन्स' के चर्वण दंत आकार में अति साधारण तथा निम्न शिखरवाले (low crowned) थे। उनकी ऊपरी सतह अवधि उभरी हुई नहीं थी। परंतु आकार की वृद्धि एवं खाद्य पदार्थ में भिन्नता आने से दंतविन्यास में अधिक परिवर्तन आए।
यद्यपि मैस्टोडॉन्स का उद्भव अफ्रीका महादेश में हुआ, तथापि ये शीघ्र ही पृथ्वी के अन्य भागों में प्रसृत हो गए। इस प्रकार मध्य नूतन (Miocene) एवं अतिनूतन (Pliocene) युग में ये संपूर्ण उत्तरी भूक्षेत्र में तथा अत्यंतनूतन युग में दक्षिण अमरीका तक फैल गए। अत्यंतनूतन युग के प्रारंभ में ही प्राचीन भू क्षेत्र से इनका विनाश हो गया, परंतु अमरीका में वर्तमान युग के दस बीस हजार वर्ष पहले तक ये वर्तमान रहे।
वर्गीकरण
[संपादित करें]- प्रोबोसीडिया
- incertae sedis †Moeritheriidae
- †Plesielephantiformes
- Elephantiformes
- †Palaeomastodontidae
- †Phiomiidae
- Elephantimorpha
- incertae sedis †Eritreum [1]
- †Hemimastodontidae
- †Mammutida (mastodons)
- Elephantida
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Shoshani, Jeheskel; Robert C. Walter; Michael Abraha; Seife Berhe; Pascal Tassy; William J. Sanders; Gary H. Marchant; Yosief Libsekal; Tesfalidet Ghirmai; Dietmar Zinner (2006). "A proboscidean from the late Oligocene of Eritrea, a "missing link" between early Elephantiformes and Elephantimorpha, and biogeographic implications". PNAS. 103 (46): 17296–17301. PMID 17085582. डीओआइ:10.1073/pnas.0603689103. पी॰एम॰सी॰ 1859925.